पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३००

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मैंने तो लड़कपन में वहुत-सी धनुहियाँ तोड़ फेंकी थीं। आपने कभी ऐसी (0) क्रोध नहीं किया । इसी धनुष पर इतना मोह किस कारण से है ? यह सुनकर भृगुवंश के ध्वजा-स्वरूप परशुराम चिढ़कर कहने लगे-- पुणे - हे छुप बालक काल बस बोलत तोहि न सँसार ।। || धनुहि सम त्रिपुरारि धनु विदित सकल संसार ।२७१। . अरे राजपुत्र ! काल के वश होने से तुझे बोलने में कुछ भी होश नहीं में है। सारे संसार में विख्यात शिव का यह धनुष क्या धनुही के समान हैं ? लषन कहा हँसि हमरें जाना ॐ सुनहु देव सव धनुष समाना राम का छति लाभु जून' धनु तोरे $ देखा राम नयन के मारे लक्ष्मण ने हँसकर कहा--हे देव ! सुनिये । हमारी समझ में तो सभी एम) धनुष समान हैं। पुराने धनुष के तोड़ने में क्या हानि-लाभ १ राम ने इसे नये के धोखे से देखा था। छुअत टूट रघुपतिहु न दोषु ॐ मुनि विलु काज करिअ कत रोए ॐ बोले चितइ परसु की ओरा ॐ हे सठ सुनेसि सुभाउ न मोरा यह तो छूते ही टूट गया; राम को इसमें कोई दोष नहीं । हे मुनि ! आप * बिना ही कारण क्रोध क्यों करते हैं ? परशुराम अपने फरसे की ओर देखकर बोले--अरे दुष्ट ! तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना ? बालक बोलि चधउँ नहिं तोही % केवल सुनि जड़ जानहि मोही ॐ बालब्रह्मचारी अति । कोही ॐ विस्व विदित छत्रिय कुल द्रोही | तुझे वालक जानकर नहीं मारता हूँ। अरे मूर्ख ! क्या तू मुझे निरा मुनि ॐ ही समझता है ? मैं बाल-ब्रह्मचारी हैं। बड़ा क्रोधी हूँ। क्षत्रियों के वंश का शत्रु राम तो विश्व-भर में विख्यात हैं। ॐ भुज वल भूमि भूप विनु कीन्ही 8 विपुल वार महिदेवन्ह दीन्ही एम् सहसवाहु भुज छेदनिहारा ॐ परसु विलोकि सहीप कुमारी अपनी भुजाओं के बल से मैंने पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया और कितनी ही बार उसे ब्राह्मणों को दे डाला। सहस्रबाहु की भुजाओं को काटने । वाले मेरे इस फरसे को ऐ राजा के लड़के ! देख ।। १. पुराना, सड़ा हुआ।