पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३०२

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  • इन्हें ( धनुष-बाण आदि को ) देखकर मैंने कुछ अनुचित कही हो, तो हे

धैर्यवान् महामुनि ! उसे क्षमा कीजिये । यह सुनकर भृगुवंश के शिरोमणि । | परशुराम क्रोध के साथ गम्भीर वाणी बोलेएम) कौसिक सुनहु मंद यह चालक कुटिल काल वस निज कुल घालक ॐ भानु बंस राकेस कलंकू ॐ निपट निरंकुस अबुध संकू हैं। | हे विश्वामित्र ! सुनो। यह बालक वड़ा ही कुबुद्धि है। यह दुष्ट मृत्यु के वश होकर अपने कुल का नाश करने वाला हो रहा है । यह सूर्य-वंशरूपी पूर्ण राम चंद्र को कलंक है। बिल्कुल उद्दण्ड, सूखे और निडर है। काल कवलु' होइहि छन माहीं ॐ कहउँ पुकारि खोरि सोहि नाहीं तुम्ह हटकहु जौ चहहु उवारा ३३ कहि प्रतापु बलु रोपु हमारा | अभी क्षणभर में यह मृत्यु का ग्रास हो जायगा । मैं पुकारकर कहे देता * हूँ, फिर मुझे दोष न देना । यदि तुम इसे बचाना चाहते हो, तो मेरी प्रताप, ॐ बल और क्रोध बतलाकर इसे रोको । के लषन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा ॐ तुम्हहिं अछत को वरनै पारा अपने मुंह तुम्ह अापन करनी ॐ वार अनेक भाँति बहु चरनी , लक्ष्मण ने कहा-हे मुनि ! आपको सुयश आपके मौजूद रहते दूसरी और एम) कौन वर्णन कर सकता है ? आपने अपने ही मुंह से अपनी करेनी का बखान अनेक बार और बहुत प्रकार से किया है। णमो नहिं संतोषु तो पुनि कछु केहहू ॐ जनि रिसि रोकि दुसह दुख सहहू । बीरव्रती तुम्ह धीर अछोला % गारी देत न पावहु सोभा इतने पर भी तृप्ति न हुई हो, तो फिर कुछ और कह डालिये । क्रोध को * रोककर असहनीय दुःख न सहिये । आप वीरों के व्रत वाले, धीर और शान्त पुरुष हैं, गाली देते आप शोभा न पायेंगे। यम) : सूर समर झरनी कहिं कहि न जलावहिं आषु ।। ॐ ॐ = बिद्यमाल' रिपु पाई इल कायर कथाहिं प्रतापु॥२७४१ शूरवीर तो युद्ध में कुछ करके दिखलाते हैं, वे कहकर अपने को नहीं जनाते । * शत्रु को युद्ध में उपस्थित पाकर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं। । १. कौर, ग्रास ! २. उपस्थित, मौजूद ।