पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३०३

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३०० अँट मन- ८ * तुम्ह त कालु हाँक जनु लावा ॐ चार बार मोहिं लागि बोलावा । जुले सुनत लपन के बचन कठोरा ॐ परसु सुधारि धरेड कर घोरा पुन । आप तो मालूम होता है काल को हाँक देकर उसे बार-बार मेरे लिये बुलाते हैं। सुना हैं। लक्ष्मण के कठोर वचन सुनकर परशुराम ने भयानक फरसे को सँभालकर राम | हाथ में ले लिया ।। रानी अव जनि देइ दोषु मोहि लोगू कटुवादी चालकु वध जोगू वाल विलोकि बहुत मैं वाँचा ॐ अब यह मरनहार भा साँचा और कहा- अब लोग मुझे दोष न दें। यह अप्रिय बोलने वाला वालक हैं वध किये जाने ही योग्य है। इसे बालक देखकर मैंने बहुत बचाया; पर अब यह । सचमुच मरने पर आ गया है। में कौसिक कहा छमिअ अपराधू ॐ वाल दोष गुन गनहिं न साधू , कर कुठार में अकरुन कोहीं ॐ आगे अपराधी गुरुद्रोहीं हूँ विश्वामित्र ने कहा-अपराध क्षमा कीजिये । बालकों के दोष और गुण एम) को साधुजन नहीं गिनते । ( परशुराम ने कहा-) एक तो मेरे हाथ में फरसा है, दूसरे मैं दयारहित क्रोधी हैं, तीसरे यह गुरु-द्रोही अपराधी सामने है। उतर देत छाँड़उँ विनु मारे ॐ केवल कौसिक सील तुम्हारे । न तु एहि काटि कुठार कठोरे ॐ गुरुहिं उरिन होतेउँ स्रम थोरै | यह उत्तर दे रहा है फिर भी इसे विनों मारे मैं छोड़ता हूँ, यह हे विश्वा मित्र ! केवल तुम्हारे शील ( मुलाहिजे ) से । नहीं तो इसे इस कठोर फरसे से | काट कर थोड़े ही परिश्रम से गुरु ( के ऋण ) से उऋगा हो जाता । । । गाधिसूनु कह हृदय हँसि मुनिहि हरिअरइ सूझ । । उनी अयमय' खाँडल ऊखमयुअजहुँ नबूझ अबूझ२७५ राम | विश्वामित्र ने हृदय में हँसकर कहा--मुनि को हरा ही हरा सूझ रहा है। किंतु यह फौलाद की बनी खाँड ( खाँडा, खड्ग ) है, ऊख की खाँड नहीं है। सुनि अब भी नासमझ वने हुये हैं। इनको सूझ नहीं रहा है। एम् कहेउ लपन मुनि सीलु तुम्हारा ॐ को नहिं जान विदित संसारा है माता पितहिं उरिन भये नीकें $ गुर रिनु रहा सोचु वड़ जीके १. लोह ।