पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३१

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उनका न टूटने वाला नीच स्वभाब नहीं मिटता। [पूर्वरुप अलङ्कार ]

लखि सुबेष जग बंचक जेऊ की । बेष प्रताप पूजिअहि तेऊ ।।
उघरहिं' अंत न होइ निवाहू । कालनेमि जिमि रावन राहू ॥

जो संसार को ठगनेवाले हैं, उन्हें भी अच्छा वेष बनाये देखकर, वेष के एए प्रताप से लोग पूजते हंी हैं। प्रन्तु अन्त में उनका कपट खुल जाने पर उनका निभाव नहीं होता, जैसे कालनेमि, रावण और राहु का हुआ।

कियेहु कुवेषु साधु सनमानू । जिमि जग जामवंत हनुमानू ॥
हानि कुसङ्ग सुसङ्गति लाहू । लोकहु बेद बिदित सब काहू ॥ 

कुवेष किये रहने पर भी साधुओं का सम्मान ही होता है, जैसे संसार में जाम्बवान और हनुमान का । कुसंग से हानि और सुसंग से लाभ होता है, यह बात संसार में और वेद में प्रकट है और इसे सब लोग जानते हैं।

गगन चढ़ रज पवन प्रसङ्गा । कीचहि मिलइ नीच जल सङ्गा । 
साधु असाधु सदन सुक सारी । सुमिरहेिं रामु देहेिं गनि गारी ॥

वायु के संग से धूल आकाश में चढ़ जाती है, और बही नीच जल के से साथ कुर्सग में पड़कर कीचड़ में मिलती है । साधुनों के घर में (फ्ते हुए) । तोता-मैना रामनाम का स्मरण करते हैं और असाधुजनों के घर के तोतामैना गिनगिन कर गालियां देते हैं।

घूम कुसङ्गति कारिख होई । लिखिअ पुरान मंजु मसि गोई ॥
सोइ जल अनल अनिल संङ्घाता' । होइ जलद जग जीवनुदाता ॥

कुसंग में पड़कर धुआँ कालख के नाम से पुकारा जाता है और वही पुराण लिखने पर सुन्दर स्याही कहलाता है । बही घुआँ, अग्नि और वायु के संग से संसार को जीवन (जल और जिन्दगी) देनेवाला बादल होता है।

ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग ।
होहिं कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलष्षन लोग ।।७(१)

ग्रह, औषधि, जल, पवन और बस्त्र, ये सब भी कुसंग और सुसंग पाकर बुरे और भले हो जाते हैं, इसको चतुर जन देखते हैं।



१. खुल जाते हैं। २. मैना । ३ . संयोग, मिलना।