पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३१४

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तथापि तुम जाकर अपने कुल की जैसी रीति हो, ब्राह्मण, कुल के वृ। होम और गुरुओं से पूछकर और बेद में वर्णित जैसा आचार हो वैसा करो। । दृत अवधपुर पटवहु जाई ३ अानहिं नृप दुसर्यहि बोलाई राम मुदित राउ कहि भलेहि कृपाला ॐ पठए दूत वोलि तेहि काला जाकर अयोध्या को दूत भेजो। वे राजा दशरथ को बुला लावे । राजा ने | समको आनन्दित होकर कहा---हे कृपालु ! बहुत अच्छा । उन्होंने उसी समय दूतों को एक बुलाकर भेज दिया। एम् बहुरि महाजन सकल वोलाए 8 आइ सवन्हि सादर सिरु नाए । ॐ हाट बाट मन्दिर सुरवासा ॐ नगर सवाँरहु चारिहूँ पासा फिर जनक ने सब महाजनों को बुलाया । सबने आकर राजा को दरम सहित सिर नवाया। राजा ने कहा-बाज़ार, रास्ते, घर, देवस्थान और सारे नगर * को चारों ओर से सजाओ। म) हर्षि चले निज निज गृह ये ६ पुनि परिचारक बोलि पठाये । हैं चहु विचित्र बितान बनाई ७ सिर धरि वचन बले सचुपाई है। राम महाजन लोग हर्षित होकर चले और अपने-अपने घर आये। फिर राजा र कु ने नौकरों को बुला भेजा, और कहा-सुन्दर मंडप बनाकर तैयार करें। यह यो सुनकर, वे राजा का वचन सिर पर धरकर और सुख पाकर चत्ते ।। । पठये बोलि शुनी’ तिन्ह नाना # जे वितान विधि कुसल सुजाना । विधिहि वंदि तिन्ह कीन्ह अरंभा ॐ विरचे कनक कदलि के खंभा । हैं. उन्होंने अनेक कारीगरों को बुला भेजा, जो मंडप छाने में उड़े कुशल और * चतुर थे। उन्होंने ब्रह्मा की वन्दना करके कार्य आरम्भ किया और पहले उन्होंने सोने के केले के खम्भे बनाये। ॐ हरित लिन्ह के पत्र फल पटुस राग के फूल ।। 1 रचन्दा देखि विचित्र अति सन विरंचिकर मृल २८७ हरे मणियों के पत्र और फल और पद्मराग ( माणिक ) मणियों के फूल बनाये। मंडप की अति विचित्र रचना देखकर ब्रह्मा का मन भी चकित हो । 1 । गयो । १. लावें । २. नौकर-चाकर । ३. कारीगर ।