पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३१५

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। ३१२ माछा माना हैं वेनु' हरित मनि मय सब कीन्हे के सरल सपरव' परहिं नहिं चीन्हे के राम) कनक कलित अहिबेलि बनाई ॐ लखि नहिं परइ सपर्ने सुहाई म | बाँस हरे मणियों ( पन्ने ) से सीधे और गाँठों से युक्त ऐसे बनाये जो है राको पहचाने नहीं जाते थे। सोने की सुन्दर नागबेलि ( पान की लता ) बनाई, जो पन्तों सहित ऐसी सुन्दर लगती थी कि पहचानी नहीं जाती थी। ' तेहि के रचि पचि बंध बनाए ॐ बिच विच मुकुता दाम सुहाये मानिक मरकत कुलिस पिरोजा ॐ चीरि कोरि घचि रचे, सरोजा | उसी नागबेलि के रचकर और पच्चीकारी करके बन्धन ( बाँधने की रस्सी ) बनाये, जिनके बीच-बीच में मोतियों की सुन्दर झालरें हैं। माणिक्य, नीलम, हीरा और फ़ीरोजे को चीर करके, कोर करके और पच्चीकारी करके, उन्होंने होम ( लाल, नीले, सफेद और फ़ीरोज़ी रंग के ) कमल बनाये। ऊँ किए शृङ्ग बहुरंग विहंगा ॐ गुजहिं कूजहिं पवन प्रसंगा एम् सुर प्रतिमा खंभन्हि गढ़ि काढ़ीं ॐ मंगल द्रव्य लिएँ सब ठाढ़ीं तुमको चौके भाँति अनेक पुराई $ सिंधुर मनिसय सहज सुहाई | भौंरे और बहुत रंगों के पक्षी बनाये, जो हवा लगने पर गूंजते और क्रूजते थे। खंभों पर देवताओं की मूर्तियाँ गढ़कर निकालीं, जो सब मंगल द्रव्य लिये * खड़ी थीं। सहज सुहावने गजमुक्ताओं के अनेकों तरह के चौके उन्होंने पुराये। एम - सौरभ पल्लव कुश सुठि किए नीलमनि कोरि। हैं l हेम बौर मरकत घवरि लसत पाटमय डोरि॥२८८ " नीलमणि को कोरकर उन्होंने आम के सुन्दर पत्ते बनाये। सोने के बोर है और रेशम की डोरी में बँधे हुये पन्ने के बने फलों के गुच्छे सुशोभित हैं। रचे रुचिर बर बंदनिवारे ॐ मनहुँ मनोभर्दै फेद सँवारे राम मंगल कलस अनेक बनाए $ ध्वज पताक पट चँवर सुहाए | उन्होंने ऐसे सुन्दर और उत्तम बन्दनवार बनाये, मानो कामदेव ने फन्दे ' सजाये हों। अनेकों मंगल-कलश, ध्वजा, पताका, परदे और सुन्दर चँवर | बनाये। | ॐ १. वाँस । २. गाँठदार । ३. पत्ते सहित । ४. पच्चीकारी करके ।।