पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(): ): ):): )))) ॐ दीप मनोहर मनिमय नाना ॐ जाइ न चरनि विचित्र विताना राम जेहि मंडप दुलहिनि वैदेही ॐ सो वरनै असि यति कधि केही राम मंडप में मणियों के अनेक सुन्दर दीपक हैं । उस विचित्र मण्डप का तो वर्णन ही नहीं हो सकता । जिस मण्डप में सीता दुलहिन होंगी, उसका वर्णन करने की बुद्धि किस कवि में हो सकती है ? दूलह राम रूप गुन सागर ॐ सो वितान तिहुँ लोक उजागर जनक भवन के सोभा जैसी ॐ गृह गृह प्रति पुर् देखिञ्ज तैसी जिसमें रूप और गुणों के समुद्र राम दूल्हा होंगे, उस मंडप को तीनों ॐ लोकों में प्रसिद्ध होना ही चाहिये । जनक के महल की जैसी शोभा है, वैसी ही ॐ शोभा नगर के प्रत्येक घर की दिखाई देती है। जेइ तिरहुति तेहि समय लिहारी ॐ तेहि लघु लाग भुवन दस चारी जो सम्पदा नीच गृह सोहा ॐ सो विलोकि सुरनायक मोहा एम उस समय जिसने तिरहुत को देखा था, उसे चौदह भुवने छोटे जान सक्छ क़ पड़े। जनकपुर में नीच के घर भी उसे समय जो सम्पदा सुशोभित थी, उसे रा) देखकर इन्द्र भी मोहित हो जाता था। बसइ नगर जेहिं च्छि र कपट नारि बर बेछु। - लेह पुर के सौभा कहत सकुचाहें सारद सेषु ।२६। य) जिस नगर में साक्षात् लक्ष्मी कपट से स्त्री का सुन्दर वेप बनाकर वसती के हैं, उस पुर की शोभा का बखान करने में सरस्वती और शेष भी सकुचाते हैं। पहुँचे दूत राम पुर पावन ॐ हरये नगर विलोकि सुहावन । ॐ भूप द्वार तिन्ह खबरि जनाई छ दसरथ नृप सुलि लिए बोलाई। जनक के दूत पवित्र राम की पवित्र पुरी अयोध्या में पहुँचे । सुन्दर नगर । देखकर वे हर्षित हुये। उन्होंने राजद्वार पर जाकर ख़बर भेजी; राजा दशरथ ने को सुनकर उन्हें बुला लिया। करि प्रनामु तिन्ह पाती दीन्ही ॐ मुदित महीप आयु उठि लीन्ही * बारि बिलोचन बाँचत पाती ॐ पुलझ गात आई भरि छाती । यो उन्होंने प्रणाम करके चिट्ठी दी। प्रसन्न होकर राजा ने स्वयं उठकर उसे है ॐ. १. प्रसिद्ध। २. चिट्ठी।। ):): ):)*Jळ:/ /५:०५८/५.७