पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३१७

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३१४ चा , ८ . ॐ लिया। चिट्टी बाँचते समय उनके नेत्रों में आँसू आ गये; शरीर में रोमाञ्च हो । म) आया, और छाती भर आईं। रामु लषनु उर कर वर चीठी ॐ रहि गए कहत ने खाटी मीठी पुनि धरि धीर पत्रिका बाँची ॐ हरषी सभा बात सुनि साँची - | हृदय में राम और लक्ष्मण, और हाथ में वह सुन्दर चिट्ठी है, राजा उसे एमः लिये ही रह गये, कह न सके कि वह खट्टी है या मीठी। फिर धीरज धरकर । उन्होंने चिट्ठी बाँची । सारी सभा सच्ची बात सुनकर हर्षित हो गई। | खेलत रहे तहाँ सुधि पाई ॐ आए भरत सहित हित' भाई के मी पूछत अति सनेह सकुचाई- ॐ तात कहाँ ते पाती आई भरत अपने मित्रों और भाई शत्रुध्न के साथ जहाँ खेलते थे, वहीं समाचार राम पाकर वे आ गये। वे बहुत प्रेम से सकुचाते हुये पूछते हैं—पिताजी ! चिट्ठी कहाँ कुँ से आई है ? । राम् । कुसल प्रानप्रिय बंधु दोउ अहहिं कहहु केहि देस। एम होम | सुन्नि सनेह साने बचन बाँची बहुरि नरेस ॥२९.०॥ | हमारे प्राणों से प्यारे दोनों भाई कुशल से तो हैं ? और वे किस देश में हैं ? स्नेह से सने हुये. ये बचन सुनकर राजा ने फिर से चिट्टी बाँची । । सुनि पाती पुलके दोउ भ्राता ॐ अधिक सनेहु समात न गाता प्रीति पुनीत भरत कै देखी ॐ सकल सभाँ सुखु लहेड विसेखी है चिट्ठी सुनकर दोनों भाई पुलकित हो गये। स्नेह इतना अधिक हो गया * कि वह उनके शरीर में समाता नहीं । भरत का पवित्र प्रेम देखकर सारी सभा राम) ने विशेष सुख पाया। 2 तव नृप दूत निकट बैठारे ॐ मधुर मनोहर बचन उचारे । । भै कहहु कुसल दोउ बारे $ तुम्ह नीकें निज नयन निहारे । तब राजा ने दूतों को पास बैठाया और मन को हरने वाले मीठे वचन । बोले- हे भैया ! कहो, दोनों बच्चे कुशल से तो हैं ? तुमने अपनी आँखों से में उन्हें अच्छी तरह देखा है न ? १. मित्र । २. बच्चे ।।