पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३२१

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| ३१८ चाटन | गुणों के सुन्दर समुद्र हैं। तुम्हें तो सभी समय कल्याणमय है। अतएव डंका के | यम बजवाकर बरात सजाओ। । चलहु बेगि सुनि गुर बचन भलेहि नाथ सिरु नाइ। एम - भूपति गवने भवन तब दूतन्ह बासु देवाइ ॥२९४॥ और जल्दी चलो ऐसे गुरु के वचन सुनकर, हे नाथ ! बहुत अच्छा कहकर और सिर नवाकर तथा दूतों को डेरा दिलवाकर राजा महल में गये। । राजा सबु रनिवास बोलाई ॐ जनक पत्रिका बाँचि सुनाई ॐ सुनि संदेसु सुकूल हरषानी ॐ अपर कथा सब भूप बखानीं • राजा ने सारे रनिवास को बुलाया, और जनक की चिट्टी बाँचकर, सुनी * दी । समाचार सुनकर सब रानियाँ हर्षित हुईं। राजा ने फिर दूसरी बातें (जो । राम दूतों से सुनी थीं ) विस्तार के साथ बताईं। ॐ प्रेम प्रफुल्लित राजहिं रानी की मनहुँ सिखिनि सुनि बारिद बानी हैं राम) मुदित असीस देहिं गुरनारीं ॐ अति आनंद मान महतारी | प्रेम में प्रफुल्लित रानियाँ ऐसी शोभायमान लगती हैं, जैसे मोरनी बादलों के | एम) की गरज सुनकर ( प्रफुल्लित होती है )। गुरु-पत्नी या बड़ी-बूढ़ी स्त्रियाँ प्रसन्न एम होकर आशीर्वाद दे रही हैं। मातायें अत्यन्त आनन्द में मग्न हैं। ... ' लेहिं परसपर अति प्रिय पाती ॐ हृदयँ लगाइ जुड़ावहिं छाती राम लषन के कीरति करनी ॐ बारह बार भूपबंर बरनी उस अत्यन्त प्यारी चिट्ठी को आपस में लेकर सब हृदय से लगाकर छाती शीतल करती हैं। राजाओं में श्रेष्ठ राजा दशरथ ने राम-लक्ष्मण की कीर्तिकथा का बारम्बार वर्णन किया। मुनि प्रसादु कहि द्वार सिधाये ॐ रानिन्ह तब महिदेव बोलाये (राम) है दिये दान आनन्द समेता ॐ चले विप्रवर आसिष देता हैं। रामः . राजा “यह सब मुनि की कृपा है' कहकर बाहर चले गये। तब रानियों ने राम ब्राह्मणों को बुलाया, और आनन्द-सहित उन्हें दान दिये । श्रेष्ठ ब्राह्मण आशीराम वद देते हुये चले । हैं 3 जाचक लिये हँकार दीन्हि निछावरि कोटि बिधि। ॐ | eAns चिरजीवहु सुत चारि चक्रबर्ति दसरथ कै॥२९५॥ है। एम)*28-सम्) -एम-28-समो%8-एम)-राम -राम -एम)* मो+$*सुमो-मो-*-रामो