पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३२३

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ॐ ३२० . स्वच्छ भान ॐ जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि ॐ सजि नवसस' सकल दुति दामिनि के यो बिधुवदनी मृग सावक लोचन ॐ निज सरूप रति मान विमोचन बिजली की-सी कान्ति बाली, चन्द्र-मुखी, हरिण के बच्चे के-से नेत्रों की वाली और अपने सुन्दर रूप से कामदेव की स्त्री रति के अभिमान को छुड़ाने सुम) ॐ वाली सुहागिन स्त्रियाँ सोलह शृङ्गार सजकर, जहाँ-तहाँ कुण्ड की झुण्ड ॐ मिलकर- . गावहिं मंगल मंजुल बानी ॐ सुनि कल रख झलकंठ' लजानी भूप भवन किमि जाइ बखाना ॐ विस्व बिमोहन रचेउ बिताना | मनोहर वाणी से मंगल-गीत गा रही हैं। जिनके सुन्दर स्वर को सुनकर कोयलें भी लजी जाती हैं। राजा के महल को वर्णन कैसे हो सकता है, जहाँ विश्व को मोहने वाला मंडप छाया हुआ है। * मंगल द्रव्य मनोहर नाना ॐ राजत बाजत विपुल निसाना । । कतहुँ विरद बन्दी उच्चरहीं ॐ कतहुँ बेदधुनि. भूसुर करहीं | नाना प्रकार के मनोहर मंगल-द्रव्य शोभित हो रहे हैं और बहुत-से नगाड़े के मा बज रहे हैं। कहीं बन्दीजन विरुदावली गा रहे हैं और कहीं ब्राह्मण वेद-ध्वनि राम्रो कर रहे हैं। गावहिं सुन्दरि मंगल गीता ॐ लेइ लेइ नामु रासु अरु सीता बहुत उछाहु भवनु अति थोरा ॐ मानहुँ उमगि चला चहुँ ओरा राम सुन्दरी स्त्रियाँ राम और सीता का नाम ले-लेकर मंगल-गीत गा रही हैं। | उत्साह बहुत है, सहल अत्यंत ही छोटा है; इससे मानो आनन्दं चारों ओर से उमड़ चला है। को सौभा दसरथ भवन कइ को कवि बरनै पार।। ॐ जहाँ सकल सुर सीस मनि रामलीन्ह अवतार।२९७ | दशरथ के महल की शोभा का वर्णन कौन कवि कर सकता है ? जहाँ सब । देवताओं के शिरोमणि रामचन्द्रजी ने अवतार लिया है। एम) भूप भरत पुनि लिये बोलाई ॐ हय गय स्पंदन” साजहु जाई चलहु बेगि रघुबीर बराता ॐ सुनत पुलक पूरे दोउ भ्राता है। १. सोलह । २. कोयल ! ३, रथ ।