पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३२५

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। ३२२ जना रथ सारथिन्ह विचित्र बनाए ॐ ध्वज पताक मनि भूषन लाए हैं। राम चवँर चारु किंकिनि धुनि करही ॐ भानु जानु सोभा अपहरहीं सारथियों ने ध्वजा, पताका, मणि और आभूषणों को लगाकर रेर्थों को | (राम) अद्भुत बना लिया है। उनमें सुन्दर चँवर लगे हैं और घंटियाँ बोल रही हैं। वे राम रथ इतने सुन्दर हैं कि सूर्य के रथ की सुन्दरता को भी छीने ले रहे हैं। साँवकरन अगनित हय होते ६ ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते सुन्दर सुकल अलंकृत सोहे की जिन्हहि बिलोकत मुनि मन मोहे | श्यामकर्ण घोड़े अगणित थे । सारथियों ने वे उन रथों में जोत दिये जो सभी देखने में सुन्दर और गहनों से सजाये हुये शोभायमान हैं, जिनको ॐ देखकर मुनियों के मन भी मोहित हो जाते हैं। हो जे जल चलहिं थलहि की नाईं ॐ टाप न बूड़ वेग अधिकाई । अस्त्र सस्त्र सव साज बनाई ॐ रथी सारथिन्ह लिए बोलाई । राम। वे घोड़े जल पर भी स्थल के समान चलते हैं। वेग की अधिकता से उनके एम टोप पानी में डूबते नहीं । अस्त्र-शस्त्र से सब साज बनाकर सारथियों ने रथियों के को बुला लिया। | ॐ चढ़ि चढ़ि रथ बाहर नगर लागी जुरन बरात । है l होत सगुन सुन्दर सबन्हि जो जेहि कारज जात २९६ । रथ पर चढ़-चढ़कर बरात नगर के बाहर जुटने लगी। जो जिस काम हैं के लिये जाता है, सभी को सुन्दर सगुन होते हैं। राम्रो कलित करिबरन्हि परीं,अँवारी $ कहि न जाइ जेहि भाँति सँवारी ॐ चले 'मत्त गज घंट विराजी ॐ मनहुँ सुभग सावनु घंन राजी । सुन्दर हाथियों पर अम्बारियाँ पड़ी हैं। वे जिस तरह सजाई गई हैं, वह कहा नहीं जा सकता। मतवाले हाथी घंटे बजाते हुये चले। मानों सावन के सुन्दर बादलों की पंक्ति हो। बाहन अपर अनेक विधाना ॐ सिविका सुभग सुखासन जाना तिन्ह चढ़ि चले बिग्र बर बृन्दा ॐ जनु तनु धरे सकल सु ति छन्दा के ॐ और भी अनेक प्रकार की सवारियाँ हैं, जैसे--सुन्दर पालकियाँ और रोम) १. जमा होने । २. पंक्ति । ३. पालकी । :: :: :: :: :