पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३२८

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| बालॐ बड़ा शोर मच गया । घोड़े और हाथी गरजने लगे। आकाश और वरात । से दोनों स्थानों में बाजे बजने लगे। देवताओं और मनुष्यों की स्त्रियाँ मंगल-गीत के गाने लगीं और सरस राग से शहनाई बजने लगी है। राम) घुट घंटि धुनि बरनि न जाई ॐ सरव' करहिं पायक फहराई में ॐ करहिं विदूषक कौतुक नाना ॐ हास कुसल कल गान सुजाना है राम घन्टे-बन्टियों की ध्वनि का वर्णन नहीं हो सकता । पैदल चलने वाले पुन सिपाही या नट आदि कण्डियाँ फहराकर कसरत दिखाते हुये चल रहे हैं। राम) हँसी करने में निपुण और सुन्दर गाने में चतुर बिंदूपक ( भाँड़ ) तरह-तरह के भो तमाशे करते थे । एम् तुरग नचावहिं कुअर वर अकलि मृदङ्ग निसान।। म) - नागर नट चितवहिं चकित डिगाहिं न ताल बँधान ॥ सुन्दर राजकुमार मृदङ्ग और नगाड़े के शब्द सुनकर उन्हीं के अनुसार राम घोड़ों को ऐसा नवा रहे हैं कि वे ताल के बन्धन से ज़रा भी नहीं डिगते । म । होशियार नट चकित होकर यह देख रहे हैं। एम बनई न बरनत बनी बराता ॐ होहिं सगुन सुन्दर सुभदाता चारा चाषु चाम दिसि लेई $ मनहुँ सकल मंगल कहि देई बरात ऐसी बनी है कि उसका वर्णन करते नहीं बनता । सुन्दर कल्याणप्रद शकुन हो रहे हैं। नीलकंठ पक्षी बाईं ओर चारा ले रहा है, वह मानो सम्पूर्ण मंगलों की सूचना दे रहा है । दाहिन काग सुवेत सुहावा करू नकुल दरसु सव काहूँ पावा के सानुकूल बह त्रिविध क्यारी के सघट सवाल श्राव वर नारी । दाहिनी ओर कौआ सुन्दर खेत में शोभा पा रहा है। नेवले की - दर्शन भी सब किसी ने पाया । शीतल, मंद और सुगन्ध पवन अनुकूल दिशा में राम बह रहा है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ भरे हुये घड़े और गोद में बालक लिये आ रन (रामी लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा ॐ सुरभी सनसुख सिहि पियादा उनको मृगमाला फिरि दाहिनि आई ॐ मंगल गन जनु दीन्हि देखाई | १. श्रम, कसरत । २. पैदल चलने वाले । ३. लोमड़ी है।