पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३३१

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ॐ ३२८ अच्छदं - | अगवानी करने वालों ने जब बरात देखी, तब उनके हृदय आनन्दित और में शरीर पुलकायमान हो गये। अगवानियों को सजधज के साथ देखकर बरातिर्यो । ने भी प्रसन्न होकर नगाड़े बजाये ।। - हरषि परसपर मिलन हित कछुक चले बगमेल'। ! जनु आनंद समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेल।३०५॥ ॐ बराती तथा अंगवानिर्यों में से कुछ आपस में मिलने के लिये हर्ष के मारे सरपट दौड़ चले । मानो आनंद के दो समुद्र अपनी मर्यादा को छोड़कर मिलते हों ।। बषि सुमन सुर सुंदरि गावहिं ॐ मुदित देव ढुंदुभी बजावहिं । बस्तु सकल राखीं नृप आगे 8 विनय कीन्हि तिन्ह अति अनुरागे। राम) देवताओं की सुन्दरियाँ फूल बरसाकर गीत गा रही हैं और देवता आनन्दित राम क़ होकर नगाड़े बजा रहे हैं। अगवानियों ने सब चीजें दुशरथजी के आगे रख दीं | राम) और अत्यंत प्रेम से विनती की। ॐ प्रेम समेत राय सब्बु लीन्हा ॐ भइ बकसीस जाचकन्हि दीन्हा एम् करि पूजा मान्यता बड़ाई 8 जनवासे कहँ चले लेवाई

राजा दशरथ ने प्रेम के साथ सब वस्तुएँ ले लीं । फिर बख्शीशें हुई और वे याचकों को दे दी गईं। फिर पूजा करके, आदर-सत्कार और बड़ाई करके, अगवान लोग सबको जनवासे की ओर लिवा ले चले। वसन बिचित्र पाँवड़े परहीं ॐ देखि धनदु धन मदु परिहरहीं हैं। अति सुंदर दीन्हेउ जलवासा ॐ जहँ सब कहुँ सब भाँति सुपासा राम

विलक्षण वस्त्रों के पाँवड़े पड़ रहे हैं, जिन्हें देखकर कुबेर भी अपने धन का (स) अभिमान छोड़ देते हैं। बड़ा सुन्दर जनवासा दिया गया, जहाँ सबको सब प्रकार राम को सुभीता था। जानी सियँ बरात पुर आई ॐ कछु निज महिमा प्रगटि जनाई ॐ हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाईं ॐ भूप पहुनई करन. पठाई जब सीता ने जाना कि नगर में बरात आ गई है, तब उन्होंने अपनी कुछ ६ महिमा प्रकट करके दिखलाई। हृदय में स्मरण कर सब सिद्धिर्यों को बुलाया १. सरपट, वांग तुड़ाकर । २. बख्शीश, इनाम। . |