पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३३३

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ॐ जब राजा दशरथ ने पुत्रों के साथ मुनि को आते देखा, तब वे हर्षित होकर म) उठे और सुख के समुद्र में थाह-सी लेते हुये चले । मुनिहिं दंडवत कीन्ह महीसा ॐ बार बार पद रज धरि सीसा राम) कौसिक राउ लिये उर लाई ॐ कहि असीस पूछी कुसलाई राम्रो पृथ्वीपति दशरथजी ने मुनि के पैरों की धूलि को बार-बार सिर चढ़ाकर हो राम दण्डवत प्रणाम किया। विश्वामित्रजी ने राजा को उठाकर हृदय से लगा लिया राम है और आशीर्वाद देकर कुशल-क्षेम पूछा। राम पुनि दंडवत करत दोउ भाई ॐ देखि नृपति उर सुखं न समाई * सुत हिय लाइ दुसह दुखु मैटे ॐ मृतक सरीर प्रान जनु भेटे फिर दोनों भाइयों को दंडवत्-प्रणाम करते देखकर राजा के हृदय में सुख के ॐ नहीं समाता था । पुत्रों को उठाकर हृदय से लगाकर उन्होंने असहनीय दुःख * को मिटाया। मानो मृतक शरीर को प्राण मिल गये ।। नै पुनि बसिष्ठ पद सिर तिन्ह नाये ॐ प्रेम मुदित सुनिवर उर लाये ॐ विष बृन्द वंदे दुहुँ भाई ॐ मनभावती असीसे ' पाई रामो फिर उन्होंने बशिष्ठजी के चरणों पर सिर नवाया। मुनि ने प्रेम में आनन्दित होकर उनको उठाकर हृदय से लगा लिया। दोनों भाइयों ने सब ब्राह्मणों की वन्दना की और मनभाये आशीर्वाद पाये।। । भरत सहानुज कीन्ह प्रनामी के लिये उठाइ लाइ उर रामा । ए हरषे लषन देखि दोउ भ्राता ॐ मिले प्रेम परिपूरित गाता । भरत ने अपने छोटे भाई शत्रुघ्न सहित राम को प्रणाम किया। राम ने उन्हें उठाकर छाती से लगा लिया । लक्ष्मण दोनों भाइयों को देखकर हर्षित हुये, और प्रेम से भरे हुये शरीर से वे उनसे मिले । का पुरजन परिजन जातिजल जाचक मंत्री मीत । | मिले जथाबिधि सबहिं प्रभु परम कृपालु विनीत ।। | फिर परम कृपालु और विनयी राम अयोध्या निवासियों, कुटुम्बियों, जाति । एम के लोगों, याचकों, मन्त्रियों और मित्रों, इन सबसे यथायोग्य मिले। रामहिं देखि बरात जुड़ानी ) प्रीति कि रीति न जाति बखानी ॐ नृप समीप सोहहिं सुत चारी की जनु धन धरमादिक तनुधारी के