पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३३४

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राम को देखकर बरात शीतल हुई। प्रीति की रीति का बखान नहीं हो संमो सकता । राजा के पास चारों पुत्र ऐसी शोभा पा रहे हैं, जैसे धर्म, अर्थ, काम ) है और मोक्ष शरीर धारण किये हुये हों। सुतन्ह समेत दसरथहि देखी ॐ मुदित नगर नर नारि विसेपी सुमन बरिसि सुर हनहिं निसाना ॐ नाक' नट नाचहं करि गाना है | पुत्रों के साथ दशरथजी को देखकर नगर के पुरुष-स्त्री बहुत प्रसन्न हो रहे एम् हैं। देवता फूलों की वर्षा करके नगाड़े बजाते हैं और स्वर्ग की अप्सरायें गा-गा। । कर नाच रही हैं । । सतानंद अरु विप्र सचिव गन ॐ मागध सूत विदुष' बन्दीजन सहित बरात राउ सलमाना ॐ अयसु माँगि फिरे अगवाना | अगवानी में आये हुए शतानन्दजी, अन्य ब्राह्मण, मन्त्रीगण, मागध, सूत, के विद्वान् और भाटों ने बरात-सहित राजा दशरथ का आदर-सत्कार किया। फिर आज्ञा लेकर वे वापस लौटे। हैं प्रथम वरात लगन तें आई 8 तातें पुर प्रमोद अधिकाई हैं राम) ब्रह्मानंद लोग सब लहहीं $ बढ़इ दिवस निसि विधि सन लहहीं पामो बरात लग्न के समय से पहले ही आ गई है, इससे जनकपुर में अधिक है। आनन्द छा रहा है। सब लोग ब्रह्म-सुख का अनुभव कर रहे हैं और ब्रह्मा से मनाते हैं कि दिन और रात बड़े हो जायें। ने र राखुसीय सोभा अवधि सुकृत अवधि दोउ राज। एम् जहँ तहँ पुरजन कहहिं असमिलि नर नारि समाज॥ | राम और सीता तो सुन्दरता की सीमा हैं और दोनों राजा पुण्य की सीमा राम) हैं; ऐसी जनकपुरवासी पुरुष-स्त्री जहाँ-तहाँ कुण्ड के झुण्ड मिलकर यहीं कह रहे हैं। | जनक सुकृत मूरत बैदेही ॐ दसरथ सुकृत रामु धरि देही । इन्ह सम काहुँ न सिव अवराधे 3 काहुँ न इन्ह समान फल लाधे सीता जनकजी के पुण्य की साक्षात् मूर्ति हैं और दशरथ के पुण्य ने राम को शरीर धारण किया है। इन दोनों राजाओं के समान शिव की आराधना और १. स्वर्ग । २. अप्सरा । ३. विद्वज़न ! ४. सीमा, हृद् । ५. पाया (गुजराती )।