पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३३७

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ॐ ३३४ , भाचा आना । | इस प्रकार सब मनोरथ कर रही हैं और हृदय को उत्साहपूर्वक आनन्द से म भर रही हैं। सीता के स्वयंवर में जो राजा आये थे, उन्होंने भी उन चारों भाइयों के के को देखकर सुख पाया। कहत राम जसु बिसद बिसाला ॐ निज निज भवन गए महिपाला ॐ गए बीति कछु दिन एहि भाँती ॐ प्रमुदित पुर्जन सकल बराती राजा लोग रोम का सुन्दर और महान् यश कहते हुये अपने-अपने घर एम) ये गये । इस प्रकार कुछ दिन बीत गये। जनकपुर के लोग और बराती सभी बड़े हैं। राम) आनन्दित हैं। मंगल मूल लगन दिनु आवा ॐ हिम ऋतु अगहनु मासु सुहावा ग्रह तिथि नखतु जोगु वर बारू' 8 लगन सोधि विधि कीन्ह विचारू अब कल्याण का मृल विवाह का दिन आ गया। हेमन्त ऋतु में सुहावना अगहन का महीना था । ग्रह, तिथि, नक्षत्र, योग और वार श्रेष्ठ थे। ब्रह्मा ने * लग्न शोधकर इस पर विचार किया। है। पटै दीन्हि नारद सन सोई ॐ गनी जनक के गनकन्ह' जोई राम) सुनी सकल लोगन यह बाता ॐ कहहिं जोतिषी आहिं विधाता है. और उसे नारदजी के हाथ भेज दिया । जनकजी के ज्योतिषियों ने भी राम वही गणना कर रखी थी। सब लोगों ने यह बात सुनी, तब वे कहने लगे-- * यहाँ के ज्योतिषी भी ब्रह्मा ही हैं। एम् । धेनुधूरि बेला बिमल सकल सुमङ्गल मूल।.. । बिप्रन्ह कहेउ बिदेह सन जानि सगुन अनुकूल।३१२। सभी सुन्दर मंगलों की मूल गोधूलि की पवित्र बेलो आ गई, और शकुन अनुकूल होने लगे। तब ब्राह्मणों ने जनकजी को बताया। ॐ उपरोहितहि कहेल नरनाहा ॐ अब बिलंब कर कारनु काहा राम सतानंद तव सचिव बोलाये ॐ मंगल सकल साजि सव ल्याये तब राजा जनक ने पुरोहित शतानंदजी से कहा-अब देरी का क्या कारण से है ? तब शतानन्दजी ने मन्त्री को बुलाया । मन्त्री संब मंगल का सामान सजाकर ले आये। १. वार, दिन । २. ज्योतिषियों ने । ३. हैं ।