पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३३८

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= = == = = --- । • - ' ५ ३३५ ॐ सङ्ख निसान पनव बहु बाजे ६ मङ्गल कलस सगुन सुभ साजे । सुभग सुशासिनि गावहिं गीता ॐ करहिं वेद धुनि विप्र पुनीता गुमा | शंख, नगाड़े, भेरी और बहुत-से बाजे बजने लगे तथा मंगल घट आदि । शुभ शकुन की वस्तुयें सजाई गईं। सुन्दर सुहागिन स्त्रियाँ गीत गा रही हैं और पवित्र व्राह्मण वेद की ध्वनि कर रहे हैं। लेन चले सादर एहि भाँती ॐ गए जहाँ जनवास वराती कोसलपति कर देखि समाजू ॐ अति लघु लाग तिन्हहिं सुरराजू सब लोग इस प्रकार आदरपूर्वक बरात को लेने चले और वहाँ गये, जहाँ रीमो बरातियों का जनबासा था। वहाँ अयोध्या-नरेश का ठाट-बाट देखकर उनको ॐ इन्द्र बहुत छोटा लगने लगा । एम) भयेउ समउ अव धारिअ पाऊ $ यह सुनि परा निसानहिं घाऊ गुहि पूछ करि कुल विधि राजा ॐ चले सङ्ग मुनि साधु समाजा उन्होंने निवेदन किया--समय हो गया, अब पधारिये । यह सुनते ही राम नगाड़ों पर चोट पड़ी । गुरु वशिष्ठ से पूछकर और कुल के सब लोकाचार करके राजा दशरथ मुनियों और साधुओं के समाज को साथ लेकर चले । को भाग्य विभव अवधेस कर देखि देव ब्रह्मादि ।। लणे सराहन सहस बुख जानि जनम निज वादि । अवध-नरेश दशरथ का भाग्य और ऐश्वर्य देखकर और अपना जन्म व्यर्थ जानकर, ब्रह्मा आदि देवता हज़ारों मुख से उसकी सराहना करने लगे। सुरन्ह सुमङ्गल अवसरु जाना है बरषहिं सुमन वजाइ निसाना सिव ब्रह्मादिक विबुध वरूथा ले चढ़े विमानन्हि नाना जूथा | देवगण सुन्दर संगले का अवसर जानकर नगाड़े बजाकर फूल बरसा रहे हैं मी हैं। शिव, ब्रह्मा आदि देवगण अनेक टोलियों में विमानों पर चढ़े हुये, प्रेम पुलक तन हृदय उछाहू ॐ चले विलोकन राम विशाहू " देखि जनकपुरु सुर अनुरागे ॐ निज निज लोक सवहिं लघु लागे । । प्रेम से पुलकित शरीर हो और हृदय में बड़ा उत्साह भरकर राम को विवाह १. सौभाग्यवती । २. व्यर्थ ।