पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३४०

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। बाल-छङ १ * ३३७ । ॐ साधु समाजु संग महिदेवा ६ जनु तनु धरे करहिं सुख सेवा राम) सोहत साथ सुभग सुत चोरी ॐ जनु अपवरग' सकल तनु धारी है उनके साथ में साधुओं और ब्राह्मणों की मंडली ऐसी शोभा दे रही है, एम् मानो सुख शरीर धारण करके उनकी सेवा कर रहे हैं। चारों सुन्दर पुत्र साथ में है ऐसे शोभित हैं, मानो सम्पूर्ण मोक्ष ( सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य, सायुज्य ) राम) शरीर धारण किये हुये हो। मरकत कनक बरन बर जोरी ३ देखि सुरन्ह भै प्रीति न थोरी पुनि रामहिं विलोकि हिय हरपे 8 नृपहि सराहि सुमन तिन्ह वर्षे नीलमणि और सुवर्ण के रङ्ग की सुन्दर जोड़ियों को देखकर देवताओं को कम प्रीति नहीं हुई (अर्थात् बहुत ही प्रीति हुई)। फिर राम को देखकर वे हृदय में हर्षित हुये। उन्होंने राजा की सराहना करके फूल बरसाये । | - राम रूपु लख सिख सुभग बाहिं बार निहारि।। राम - पुलक गीत लोचन सजा उमा समेत पुराhि३१५। राम नख से शिखा तक राम का सुन्दर रूप बार-बार देखकर पार्वती-सहित । शिवजी का शरीर पुलकित हो गया और नेत्र जल से भर गये। * केकि कंठ दुति स्यामल अंगा के तड़ित विनिंदक बसन सुरंगा व्याह विभूषन विविध बनाए ॐ मंगलमय सव भाँति सुहाए | राम राम का मोर के कंठ की कान्ति बाला साँवला शरीर है। बिजली को होम अत्यंत उपहास करने वाला सुन्दर ( पीले ) रंग का उनका वस्त्र है। विवाह के के तरह-तरह के मंगलमय और सब प्रकार से सुन्दर गहने शरीर पर सजाये हुये हैं। शिम) ॐ सरद बिमल बिधु बदन सुहावन ॐ नयन नवल राजीव लजावन । राम सकल अलौकिक सुन्दरताई ॐ कहि न जाइ मन ही मन भाई राम राम का मुख शरद् पूर्णिमा के निर्मल चन्द्रमा की तरह सुहावना है। नेत्र नबीन कमल को लेजाने वाले हैं। सारी सुन्दरता अलौकिक है । वह कही नहीं जा सकती । मन ही मन प्रिय लगती है। बंधु मनोहर सोहहिं संगा जात नचवित चपल तुरं या राज अर वर वाजि देखावहिं की बंस प्रसंसक विरिद सुनावहिं। १. स्वर्ग । २. वंदीजन, भाट ।