पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३४२

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ॐ हरि हित सहित रामु जव जोहे ॐ रमा समेत रमापति मोहे हैं एम) निरखि रामछवि विधि हरपाने ॐ अटै नयन जानि पछिताने एमा विष्णु ने जब प्रेम-सहित राम को देखा, तब वे लक्ष्मीपति लक्ष्मी-सहित मोहित हो गये । राम की शोभा देखकर व्रह्मा बड़े प्रसन्न हुये, पर अपने आठ ही ॐ नेत्र जानकर पछताने लगे। सुर सेनप उर बहुत उछाहू ॐ विधि ते डेवढ़ सु लोचन लाई। रामहिं चितव सुरेस सुजाना ॐ गौतम सापु परम हित साना देवताओं के सेनापति स्वामिकार्तिक के हृदय में बड़ा उत्साह है, क्योंकि उन्हें ॐ ब्रह्मा से ड्योढ़ अर्थात् वारह नेत्रों को सुन्दर लाभ मिल रहा है। सुजान इन्द्र राम । के को देख रहा है और गौतम मुनि के शाप को अपने लिये हितकर मान रहा है। |ने, देव सकल सुरपतिहिं सिहाहीं ॐ आजु पुरंदर' सम कोउ नाहीं हो ॐ मुदित देवगन रासहिं देखी ६ नृप समाज दुहुँ हरप विसेषी । रामा सब देवता इन्द्र से ईर्ष्या कर रहे हैं ( और कहते हैं कि ) आज इन्द्र के एमो 8 समान भाग्यवान् दूसरा कोई नहीं है। देवगण राम को देखकर प्रसन्न हैं। दोनों में राम्रो राजाओं के समाज में विशेष हर्ष छा रहा है ।। ॐ चंद-अति हरषु राजसमाजु दुहुँ दिसि ढुन्दुभी बाजहिं घनी । । हैं बरषहिं सुमन सुर हर्षि कहि जय जयति जयरघुकुल्तसली एम् एहि भाँति जानि बरात आवत बाजने बहु वाजहीं । एम रानी सुसिनि बोलि परिछन हेतु मंगल साजहीं ॥ दोनों ओर से राज-समाज में अत्यन्त हर्ष है और बड़े ज़ोर से नगाड़े बज रहे हैं। देवता हर्षित होकर और रघुकुल के शिरोमणि राम की जय हो, होम ॐ जय हो, जय हो', कहकर फूल बरसा रहे हैं। इस प्रकार बरात को आती हुई जानकर बहुत प्रकार के बाजे बजने लगे। रानी सुहागिन स्त्रियों को बुलाकर परछन के लिये मंगल द्रव्य सजाने लगीं। रामे साजि आरती अनेक विधि मंगल सकल सँवारि ।।

  • चलीं मुदित परिछल करन गजगासिनि बर नारि ॥