पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३४३

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। ३४०. अट नस ८ । ॐ अनेक प्रकार से आरती सजाकर और सब मंगल द्रव्यों को ठीक-ठीक है संमो रखकर हाथी की-सी चाल चलने वाली उत्तम स्त्रियाँ परछने के लिये प्रसन्न । ॐ होकर चलीं । रामो विधुवदनी सब सब मृगलोचनि सब निज तन छवि रति मदु मोचनि मि) कुँ पहिरे बरन बरन बर चीरा ॐ सकल विभूषन सजे सरीरा है राम सब स्त्रियाँ चन्द्रमा के समान मुंह वाली, सभी मृग की-सी आँखों वाली रामो छै और सभी अपने शरीर की शोभा से रति के अभिमान को मिटाने वाली हैं। वे ॐ राम अनेक रंगों की सुन्दर साड़ियाँ पहने हैं और शरीर पर सब गहने सजाये हुये हैं। सकल सुमंगल अंग बनाए ॐ कहिं गान कलकंठ लजाए कंकन किंकिनि नूपुर वाजहिं $ चालि बिलोकि काम गज लाजहिं * सब अंगों को सुन्दर मंगलमय पदार्थों से सजाये हुये वे कोयल को लजाती * * हुई गान कर रही हैं। कंगन, करधनी और पाजेब बज रहे हैं। स्त्रियों की चाल देखकर कामदेव का हाथी भी लजा जाता है। ॐ बाजहिं वाजन विविध प्रकारा ॐ नभ अरु नगर सुमंगल चारा । राम) सची' सारदा रमा भवानी ॐ जे सुरतिय सुचि सहज सयानी । अनेक प्रकार के बाजे बज रहे हैं। आकाश और नगर दोनों स्थानों में कैं रामा सुन्दर मंगलाचार हो रहे हैं। इंद्राणी, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती और जो स्वभाव (राम) ही से पवित्र और सयानी देवांगनायें थीं, एम् कपट नारि वर वेष बनाई 8 मिलीं सकल रनिवासहिं जाई । * करहिं गान कल मंगल वानी ॐ हरष विबस सव काहुँ न जानी वे सब स्त्री को कपट-वेष बनाकर रनवास में जा मिलीं और मनोहर वाणी । से मंगल गीत गाने लगीं। सब हर्ष में बेसुध हैं, किसी ने उन्हें पहचाना नहीं। । छंद-को जान केहि आनंद बस सब ब्रह्म बर परिछन चली। कल गान मधुर निसान बरषहिं सुमन सुर सोभा भली॥ युवा आनंद कंदु बिलोकि दूलह सकल हिय हरषित भईं। सो हैं अंभोज अंबक अंबु उमगि सुअंग पुलकावलि छईं। कैं। १. इन्द्राणी । २. लक्ष्मी । ३. कमल ।