पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३४४

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- बा- छङ ३४१ कौन किसे जाने-पहचाने ? सव आनन्द के वश में ब्रह्मरूपी दूल्हे को परछने के चलीं । मनोहर गान हो रहा है, मधुर-मधुर नगाड़े बज रहे हैं, देवता फूल बरसा ॐ रहे हैं; बड़ी अच्छी शोभा है। आनन्द के मूल दूलह को देखकर सब स्त्रियाँ । हृदय में हर्षित हुई। कमल ऐसे नेत्रों में आँसू उमड़ आये और सबके सुन्दर अंगों में रोमाञ्च हो आया । - एम जो सुखु भा' सिय मातु मन देखि राम वर वेषु ।। late सो न सकहिं कहि कलप सत सहससारदा सेषु ।३१८।। राम का सुन्दर रूप देखकर सीता की माता के मन में जो सुख हुआ, उसे सौ हज़ार कल्पों में भी हज़ारों सरस्वती और शेष नहीं कह सकते । नयन नीरु हठि मंगल जानी ॐ परिछन करहिं मुदित मन रानी बेद विहित अरु कुल आचारू ॐ कीन्ह भली विधि सव व्यवहारू मंगल अवसर जोनकर नेत्रों के जल को रोके हुये रानी प्रसन्न मन से परछन राम कर रहीं हैं। वेदों में वर्णित तथा कुल में होने वाले सभी आचार और व्यवहार ॐ रानी ने भली भाँति किये। राम पंच सबद धुनि मंगल गाना ॐ पट पाँबड़े परहिं विधि नाना पामो करि आरती अरघु तिन्ह दीन्हा ॐ राम गवर्नु मंडप तव कीन्हा । | पाँच प्रकार के वाजों के शब्द ( तंत्री, ताल, झाँझ, नगाड़ा और तुरही ) और पाँच प्रकार की ध्वनियाँ ( वेदध्वनि, वन्दिध्वनि, जयध्वनि, शंखध्वनि और । हुलूध्वनि ) और मंगल-गान हो रहे हैं। अनेक तरह के वस्त्रों के पाँवडे पड रहे। हैं। रानी ने आरती करके अयं दिया, तब राम ने मंडप में गमन किया। दसरथु सहित समाज बिराजे ॐ विभव विलोकि लोकपति लाजे समयँ समयँ सुर बरपहिं फूला ॐ सांति पढ़हिं महिसुर अनुकूला उम्) महाराज दशरथ अपनी मंडली-सहित विराजमान हुये । उनके ऐश्वर्य को (राम) देखकर लोकों के स्वामी भी लजा गये । समय-समय पर देवता फूल बरसा रहे क़ हैं, और ब्राह्मण लोग शान्ति पाठ कर रहे हैं। राम) नभ अरु नगर कोलाहल होई पनि पर कछु सुनइ न कोई । एहि बिधि रामु मंडपहिं आए ॐ अबु देङ सिन वैठाए । १. हुआ।