पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

३४४ Bा .. राजा जनक ने सब बरातियों का पूजन सबको समधी ( दशरथ ) के समान मानकर सब प्रकार से आदरपूर्वक किया । सबको उन्होंने उचित आसन दिये। मैं एक सुख से उस उत्साह का वर्णन क्या करू ? म) सकल बरात जनक सनमानी के दान सान विनती वर बानी ) | विधि हरि हर दिसिपति दिनराऊ ॐ जे जानहिं रघुवीर प्रभाऊ हैं। सुमो जनकजी ने दान, मान-सम्मान, विनय और मधुर वाणी से सारी बरात राम्रो ॐ का सम्मान किया । ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दिग्पाल और सूर्य जो रामचन्द्रजी का | राम प्रभाव जानते हैं, हूँ कपट विप्न बर वेषु वनाएँ ॐ कौतुक देखहिं अति सच पाएँ हूँ पूजे जनक देव सम जानें 9 दिए सुआसन बिनु पहिचानें ३. वे श्रेष्ठ ब्राह्मण का कपट-वेष बनाये हुये बहुत ही सुख पाते हुये सब कौतुक देख रहे थे । जनकजी ने उनको देव तुल्य जाना, उनका सत्कार किया और बिना पहचाने ही उन्हें सुन्दर आसन दिये । ॐ छन्द-पहिचान को केहि जान सबहि अपान सुधि भोरी भई। आनंद कंडु बिलोकि दूलहू उभय दिसि आनँदमई ॥ सुर लखे राम सुजान पूजे मानसिक आसन दए । सो अवलोकि सीलु सुभाउ प्रभु को विबुधमन प्रमुदित भए॥ हैं। कौन किसे पहचाने ? सबको अपनी ही सुध भूली हुई है। आनन्द के मूल में है दूलह को देखकर दोनों ओर आनन्द छाया हुआ है। बुद्धिमान् राम ने देवताओं को पहचान लिया और उनका मानसिक सत्कार करके उन्हें मानसिक सन् दिये । प्रभु का शील-स्वभाव देखकर देवंगण मन में बहुत आनन्दित हुये। - रामचंद्र मुख चंद्र छबि लोचन चारु चकोर ।। णमा १ करत पान सादर कत्ल प्रेम प्रमोदु नथोर ॥३२१॥ राम . रामचन्द्र के मुखरूपी चन्द्रमा की छवि को सभी सुन्दर चकोररूपी लोचन आदरपूर्वक पान कर रहे हैं। प्रेम और आनन्द अधिक है। । समउ बिलोकि बसिष्ठ बुलाए ॐ सादर सतानंदु सुनि आए कॅ बेगि कुअँरि अब नहु जाई के चले मुदित मुनि आयसु पाई हैं।