पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३४९

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एम) E-राम)- रामराम):-राम- राम -राम -राम -राम -राम -राम- रामा ॐ ३४६ : अछfal : भी लजा जाते हैं। पाजेब, पैंजनी और सुन्दर कंकण ताल की गति के अनुसार - होम बड़े सुन्दर बज रहे हैं। र सोहति बनिता वृन्द महुँ सहज सुहावन सीय। सुमो 32 छबिललना गनमध्यजनु सुखमा तिय कमनीयः॥ (ए) स्वभाव ही से सुन्दरी सीता स्त्रियों के समूह में इस प्रकार शोभित हो रही * हैं, जैसे छविरूपी ललनाओं के समूह के बीच शोभारूपी सुन्दर स्त्री सुशोभित हो। । सिय सुंदरता बरनि न जाई को लघु सति बहुत मनोहरताई । ॐ आवत दीख बरातिन्ह सीता को रूप रासि सब भाँति पुनीता ॐ राम सीता की सुन्दरता का वर्णन नहीं हो सकता। मेरी बुद्धि छोटी है और कुँ सुन्दरता बहुत बड़ी । रूप की राशि और सब प्रकार से पवित्र सीता को जब राम) बरातियों ने आते देखा, । सबहिं मनहिं मन किए प्रनामा ३ देखि राम भए पूरन .. कामा राम हरचे दसरथ सुतन्ह समेताँ ॐ कहि न जाइ उर अनिँद जेताँ तब सबने मन ही मन उन्हें प्रणाम किया और राम को देखकर तो सभी है कृतार्थ हो गये। राजा दशरथ पुत्रों-सहित हर्षित हुये। उनके हृदय में जितना । आनन्द था, वह कहा नहीं जा सकता। एम् सुर प्रनामु. करि बरिसहिं झूला ॐ मुनि असीस धुनि मंगल मूला गान निसान कोलाहलु भारी ॐ प्रेम प्रमोद मरान नर - नारी देवता प्रणाम करके फूल बरसा रहे हैं। कल्याण के मूल मुनियों के हैं। आशीर्वाद की ध्वनियों तथा गानों और नगाड़ों के शव्द से बड़ा कोलाहल हो * रहा है। पुरुष-स्त्री सभी प्रेम और आनन्द में मग्न हैं। म) एहि बिधि सीय मंडपहिं आई ॐ प्रमुदित, सांति पढ़हिं मुनिराई तेहि अवसर कर विधि व्यवहारू ॐ दुहुँ कुलगुरः सब कीन्ह अचारू रामो इस प्रकार सीता मण्डप में आई। सुनिराज बहुत ही आनन्दित होकर है शान्ति-पाठ पढ़ रहे हैं। उस अवसर की सब रीति, व्यवहार और कुलाचार दोनों रामो कुल-गुरुओं ने किया। छंद-आचार करि गुरु गौरि गनपति मुदित बिप्र पुजीवहीं। ॐ के सुर प्रगटि पूजा लेहिं देहिं असीस अति सुख पावहीं॥ - D%25-राम-राम- राम)--राम *राम-राम-एम -एम)-28- 0 8-0%ae-एम