पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३५

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आाखर अरथ अलंकृति नाना । छंद प्रबन्ध अनेक विधाना ॥
भावभेद रसभेद अपारा । कबित दोष गुन विविध प्रकारा ॥
कवित बिबेक एक नहिं मोरे । सत्य कहौं लिखि कागद कोरे ॥

अक्षर, अर्थ, बहुत-से अलदार, छन्द और उनकी रचनायें अनेक प्रकार । में की होती हैं। भावों और रसों के अपार भेद हैं तथा कविता में नाना प्रकार के गुण और दोष होते हैं। इनमें से काव्य का एक भी ज्ञान मुझे नहीं है। यह बात मैं कोरे काग़ज़ पर लिखकर (शपथ पूर्वक ) सत्ये कहता हूँ।

ऊँ भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्वविदित गुन एक। 
सो विचारि सुनिहहिं सुमति जिन्हके बिमल विंबेक ॥

मेरी रचना सारे गुणो से रहित है। बस, इसमें एक ही गुण है, जो सारे संसार में प्रकट है । यह विचारकर वे मनुष्य, जिनकी बुद्धि अच्छी है और जिनके हृदय में निर्मल ज्ञान है, इसे सुनेंगे ॥९॥

एहि महूँ रघुपति नाम उदारा । अति पावन पुरान स्रुति सारा ॥
मंगल भवन अमंगल हारी । उमा सहित जेहि जपत पुरारी ॥

इसमें रामचन्द्रजी का पवित्र और उदार नाम है, जो पुराणो और श्रुतियों का सार है, जो कल्याण का घर और अमंगल को दूर करने वाला है और जिसे पार्वती-सहित शिवजी जपा करते हैं।

भनिति विचित्र सुकवि कृत जोऊ । राम नाम विनु सोह न सोऊ ॥
विधुवदनी सब भाँति सँवारी । सोह न बसन बिना बर नारी ॥

चाहे कैसे ही अच्छे कवि की अनोखी कविता हो, पर राम नाम के बिना उसकी शोभा नहीं होती, जैसे चन्द्रमा के समान मुख वाली सुन्दर स्त्री सब प्रकार के शृङ्गर करने पर भी वस्त्र के बिना शोभा नहीं पाती ।

सब गुन रहित कुकवि कृत बानी । राम नाम जस अंकित जानी ॥
सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही । मधुकर सरिस सन्त गुनग्राही ॥

किन्तु सब गुणों से रहित कुकवि की रची हुई कविता भी राम नाम के यश से अङ्कित हो तो पंडितजन उसको आदरपूर्वक कहते और सुनते हैं; क्योंकि


१. सादे ।२. रचनाकविता ।