पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३५१

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३४८, ३॥ मना । हैं समउ जानि मुनिवरन्ह बोलाईं ॐ सुनत सुवासिनि सादर ल्याई के राम जनक बाम दिसि सोह सुनयना ॐ हिमगिरि संग बनी' जनु मुयना ॐ समय जानकर श्रेष्ठ मुनियों ने उनको बुलवाया। यह सुनते ही सुहागिन हैं। एम) स्त्रियाँ उन्हें आदर-पूर्वक ले आईं। सुनयना ( जनकजी की पटरांनी ) जनकजी राम की बाईं ओर ऐसी सुशोभित हुईं, मानो हिमांचल के साथ मैना दुलहिन रामो शोभित हों। कनक कलस मनि कोपर रूरे ॐ सुचि सुगंध मंगल जल पूरे निज कर मुदित रायँ अरु रानी $ धरे राम के आगे अनी सोने के कलश और मणियों की सुन्दर परातें, जो पवित्र और सुगंधित * मङ्गल-जल से भरे हैं, राजा और रानी ने प्रसन्न होकर अपने हाथों से आकर राम के के आगे रक्खीं । ॐ पढ़हिं वेद मुनि मंगल बानी ॐ गगन सुमन झरि अवसरु जानी है राम बर विलोकि दंपति अनुरागे ॐ पाय पुनीत पखारन लागे तुम मुनि कल्याणमयी वाणी से वेद पढ़ रहे हैं; सुअवसर जानकर आकाश से यू फूलों की झड़ी लग गई है। दूलह को देखकर राजा-रानी प्रेम-मग्न हो गये । है और उनके पवित्र चरणों को पखारने लगे। के छंद-लागे पखारन्ह पाय पंकज प्रेम तनु पुलकावली । । राम नभ नगर गान निसान जय धुनि उमगि जनु चहुँ दिसि चली नाम जे पद सरोज मनोज अरि उर सर सदैव विराजहीं। हैं जे सकृत सुमिरत बिमलता मन सकल कलि मल भाजहीं हैं। | वे राम के कमल ऐसे चरणों को पखारने लगे। प्रेम से उनका शरीर पुलहै कित हो आया है। आकाश और नगर दोनों में होने वाले गान, नगाड़े और एम जय-जयकार की ध्वनि मानो चारों दिशाओं में उमड़ चली । जो कमल ऐसे चरण कामदेव के शत्रु शिवजी के हृदय-रूपी सरोवर में सदा विराजते हैं, जिन का एक बार भी स्मरण करने से मन में निर्मलता आती है और कलियुग के । सारे पाप भाग जाते हैं, १. दुलहिन ( मारवाड़ी )। २. एक वार । .:. गम