पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३५३

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ॐ सुन्दर नवीन कीर्तिं छा गई । विदेह ( जनक ) कैसे विनय करें ? साँवली मूर्ति ( राम ) ने उन्हें विदेह ( देह की सुध-बुध से रहित ) कर दिया था। विधिपूर्वक ॐ हवन करके गठजोड़ी की गई और भाँवरे होने लगीं। राम जय धुनि बंदी बेद धुनि मंगल गान निसान। ॐ सनि हरषाहिं बरषाहं विबुद्ध सुर तरू सुमन सुजान ॥ | जय की ध्वनि, बन्दी-ध्वनि और वेद-ध्वनि, मङ्गल-गान और नगाड़े की ध्वनि सुनकर चतुर देवगण हर्षित हो रहे हैं, और कल्पवृक्ष के फूल बरसा रहे हैं। ॐ कुंअँरु कुरि कल भारि देहीं ॐ नयन लाभु सबु सादर लेहीं रामा जाइ न बरनि मनोहर जोरी ॐ जो उपमा कछु कहउँ सो थोरी वर और कन्या सुन्दर भाँवर दे रहे हैं। सब दर्शक आदरपूर्वक नेत्रों का एम लाभ ले रहे हैं। उस मनोहर जोड़ी को बर्णन नहीं किया जा सकता; जो कुछ उपमा कहूँगा, सब थोड़ी ही होगी। राम राम सीय सुंदर प्रतिछाहीं ॐ जगमगाति मनि खम्भन्ह माहीं तुम मनहुँ मदन रति धरि वृहु रूपा ॐ देखत राम, विशाहु अनूपा राम और सीता का सुन्दर प्रतिबिम्ब मणि के खम्भों में जगमगा रहा है। * मानो कामदेव और रति बहुत-से रूप घारण करके राम का अनुपम विवाह देख । | दरस लालसा सकुच न थोरी ॐ प्रगटत दुरत बहोरि . बहोरी ॐ भए मगन सब देखनिहारे % जनक समान अपान विसारे रामा उनको दर्शन की लालसा भी बहुत है और संकोच भी कम नहीं है। राम्रो हैं। इससे वे बार-बार प्रकट होते और छिपते हैं। सब देखने वाले आनन्द-विभोर हों राम गये और जनक की तरह सब ने अपनी सुध-बुध भुला दी। ॐ प्रमुदित सुनिन्ह भाँवरी फेरी ॐ नेग’ सहित सब रीति निबेरी सुरू राम सीय सिर सेंदुर देहीं ॐ सोभा कहि न जात बिधि केही हर्ष पूर्वक मुनियों ने भाँवरें फिराईं और नेग दे-दिलाकर विवाह की सब रीतियाँ निपटा दीं । राम सीता के सिर में सिंदूर दे रहे हैं, वह शोभा किसी के प्रकार भी कंही नहीं जा सकती। १. परछाई । २. छिपते । ३. अपनी सुध-बुध । ४. वंधा हुआ हक़ ।।