पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३५४

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| अरुन पराग जलजु भरि नीॐ ॐ ससिहि भूप अहि लोभ अमी के राम बहुरि वसिष्ठ दीन्ह अनुसासन ॐ वर दुलहिनि वैठे एक आसन । मानो कमल को लाल पराग से अच्छी तरह भरकर अमृत पाने के लोभ से सर्प चन्द्रमा को भूषित कर रहा है। फिर वशिष्ठजी ने आदेश दिया, तब दूलह की तरह भरकर अमन एम और दुलहिन एक भूषित कर रहा है। हैं छन्द-बैठे बरासन रामु जानकि मुदित सल दसरथु भए। । तनु पुलक पुनि पुनि देखि अपने सुकृत सुरतरु फल तये। भरि भुवन रहा उछाहु राम विवाह झा सवहीं कहा। केहि.भाँति बरनि सिरात रसना एक एहु मंगलु सहा ॥ :: राम और सीता श्रेष्ठ आसन पर बैठे, उन्हें देखकर दशरथजी मन में बहुत राम) आनन्दित हुये । अपने पुण्यरूपी कल्पवृक्ष में नये फल देखकर उनका शरीर रामे बार-बार पुलकायमान हो रहा है। उत्साह सारे भुवनों में भर गया । सबने कहा। | (राम) कि राम का विवाह हो गया । जीभ तो एक है, और यह मंगल महान् है। भला, ख) | वह किस प्रकार वर्णन करने पर चुक सकता है ? । तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि ॐ । ए एम) मांडवी छ तीति उमिला कुंअरि लई हँकारि ॐ ॥ पाने) | कुसकेतु कन्या प्रथम जो शुन सील सुख सोसामई । हैं सब रीति प्रीति समेत करि सो ब्याहि छुप भरतहि दई॥ तब जनकजी ने वशिष्ठजी की आज्ञा पाकर विवाह का साज-सजाकर मांडवी, श्रुतिकीर्ति और उर्मिला नाम की राजकुमारियों को बुलवा लिया। कुशध्वज की बड़ी कन्या मांडवी को, जो गुण, शील, सुख और शोभा की रूपे ही। थी, राजा जनक ने प्रीति-सहित सब रीतियाँ करके भरत को ध्याह दिया। ऊँ जानकी लघु भगिनी सकल सुन्दरि सिरोसनि जाति है। । सो जनक दीन्ही ब्याहि लषनहि सकल विधि सनस्शनिकै॥