पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३५५

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३५२ अच्छाँटना । है जेहि नाम श्रुतकीरति सुलोचनि सुमुखि सब शुन आगरी। सो दुई रिपुसूदनहि भूपति रूप सील उजागरी॥ एमा सीता की छोटी बहन उर्मिला को सबं सुन्दरियों की शिरोमणि जानकर * उस कन्या को सब प्रकार से सम्मान करके जनकजी ने लक्ष्मण को ब्याह दिया। जिसका नाम श्रुतिकीर्ति है और जो सुन्दर नेत्रों वाली, सुन्दर सुख वाली, सब गुणों में निपुण और रूप और सुशीलता में विख्यात है, उसे राजा ने शत्रुघ्न को व्याह दिया । है अनुरूप बर दुलहनि परस्पर लखि संकुचि हियँ हरषहीं। तुम सब मुदित सुन्दरता सहहिं सुमन सुर गन् बरषहीं॥ सुम सुंदरी सुंदर बरन्ह सह सब एक मंडप राजहीं। ) जनु जीव उर चारिउ अवस्था बिभुन सहित बिराजहीं हैं। | दूलह और दुलहिन एक दूसरे के अनुरूप हैं। वे आपस में एक दूसरे को एम् । देखकर सकुचाते और हृदय में हर्षित हो रहे हैं। सब दर्शक प्रसन्न होकर उनकी राम्रो सुन्दरता की सराहना करते हैं और देवगण फूल बरसाते हैं। सब सुन्दरी दुलहिनें सुन्दर दुलहों के साथ एक ही मण्डप में शोभा पा रही हैं। मानो हृदय में जीव की चारों अवस्थाएँ अपने चारों स्वामियों-सहित विराजमान हों। " मुदित अवधपति सकल सुत बधुन्ह समेत निहारि। 12 जनु पाये महिपाल मनि क्रियन्ह सहित फल चारि ॥ अयोध्या के राजा दशरथजी बहुओं-सहित अपने सब पुत्रो को देखकर ऐसे आनंदित हैं, मानो राजाओं के शिरोमणि दशरथजी क्रियाओं-सहित चारों फल पा गये ।। । जसि रघुबीर ब्याह विधि बरनी ॐ सकल कुआँर व्याहे तेहि करनी कहि न जाइ कछु दाइज भूरी ॐ रहा कनक मनि मंडप पूरी १. चार अवस्था - जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीय ।। २. चार अवस्थाओं के स्वामी--विश्व, तेजस, झ, ब्रह्म । . ३. चार क्रियायें--यक्ष-क्रिया, श्रद्धा-क्रिया, योग-क्रिया, ज्ञान-क्रिया । ४. चार फल-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ।।