पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

। ३५४ : ऋद्धिा मुना ८ कर जोरि जनक बहोरि बंध समेत कोसलराय सों। एम बोले मनोहर बयन सानि सनेह सील सुभाय' सों । सो समबंध राजन रावरें हम बड़े अब सब बिधि भए । एहि राज साज समेत सेवक जानिबे बिनु गथ लए॥ ॐ : फिर जनक जी अपने भाई-सहित हाथ जोड़कर दशरथजी से स्नेह, शील और प्रेम में सोनकर मधुर वाणी बोले-हे राजन् ! आपके साथ सम्बन्ध करके । अब हम सब प्रकार से बड़े हो गये। आप इस राज-पाट सहित हम दोनों को | बिना दाम लिये हुये अपना सेवक ही समझिये । ए दारिका परिचारिका करि पालवी करुना नई। युवा अपराधु छमिको बोलि पठए बहुत हौं ढीट्यो कई ॥ | पुनि भानुकुल भूषन सकल सनमान निधि समधी किये। है कहि जात नहिं बिनती परसपर प्रेम परिपूरन हिये॥ हैं। । इन कन्याओं को टहलनी की तरह मानकर, नई-नई दया करके पालन हाम् करना । मैंने आपको बुला भेजा, यह बड़ी ढिठाई हुई, इस अपराध को क्षमा की जियेगा । फिर सूर्यकुल के शिरोमणि दशरथजी ने समधी ( जनकजी ) को । सम्पूर्ण सम्मान का भण्डार कर दिया । उनकी परस्पर की विनय का वर्णन नहीं है हो सकता। दोनों के हृदय प्रेम से परिपूर्ण हैं। हो :: बृदारका गर्न सुमन बरपहिं राउ जनवासेहि चले। होली दुन्दुभीजय धुनि बेद धुनि नभनगर कौतूहल भले॥ ॐ तब सखी मङ्गल गान करत मुनीस आयसु पाई है। एमी दूलह दुलहिलिन्ह सहित सुन्दरि चलीं कोहबर' ल्याइ है। एमा - देवगण फूल बरसा रहे हैं। राजा जनवासे को चले। नगाड़े की ध्वनि, (ए) जय-जयकार और वेद की ध्वनि से आकाश और नगर दोनों में खूब कोलाहल फू हो रहा था। तब मुनिराज शतानन्द जी की आज्ञा पाकर सब सुन्दरी सखियाँ १. सुन्दर भाव । २. देवता । ३. विवाह के पश्चात् वर-वधू के प्रथम मिलने का घर . राम-राम-रामारामारामाराम)****राम-राम-मोम -रामो