पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३६

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३३ सन्तजन भौंरे की भाँति गुण ही को ग्रहण करने वाले होते हैं ।

जदपि कवित रस एकउ नाहीं	। राम प्रताप प्रगट एहि माहीं ॥
सोइ भरोस मोरे मन आावा । केहि न सुसंग बड़प्पनु पावा ॥

यद्यपि मेरी रचना में कविता का एक भी रस नहीं है, तथापि रामचन्द्रजी का प्रताप इसमें प्रकट है । बस, मेरे मन में यही एक भरोसा है। किसने सत्संग से बड़प्पन नहीं पाया ?

धूमउ तजइ सहज करुआई । अगरु प्रसंग सुगन्ध बसाई ॥
भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी । राम कथा जग मंगल करनी ॥

धुआँ भी अगर के साथ से सुगन्धुित होकर अपने स्वाभाविक कड़वेपन को ने छे छोड़ देता है । मेरी कविता यद्यपि भद्दी है, परन्तु इस में जगत् का मंगल करने बाली रामकथा रूपी अच्छी बस्तु का वर्णन किया गया है।

छंद- मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथकी ।
    गति कूर कविता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की ।
    प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी ।
    भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी ॥

तुलसीदासजी कहते हैं कि रामचन्द्रजी की कथा कल्याण करने वाली और कलियुग के पापों को दूर करने वाली है । इस भद्दी कवितारूपी नदी की गति, पवित्र जल वाली गंगा की गति के समान है । प्रभु के सुयश के सत्संग से मेरी भद्दी कविता भी अच्छी और सज्जनों के मन के भाने वाली हो जायगी । श्मशान की अपवित्र राख महादेव जी के अङ्ग का संग पाने से सुहावनी लगती है। है और स्मरण करते ही पवित्र करने वाली होती है ।

प्रिय लागिहि अति सबहि मम भनिति राम जस संग। 
दारु विचारु कि करइ कोउ बंदिअ मलय प्रसंग॥१०॥

श्रीरामचन्द्रजी के यश के साथ मेरी कविता भी सबको बहुत प्रिय लगेगी। क्या कोई चन्दन के लिये यह विचार करता है कि यह किस वृक्ष का काष्ठ है?

१. कड़वापस ॥ २. सुगंधित होकर। ३. भद्दी । ४, काष्ठ। ५, मलय पर्वत ।