पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३६१

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| म)-3-पम -राम -राम राम राम- राम-E-राम -राम)-*राम -राम -रामा ॐ ३५८ ॥ ६॥ सादुर सब के पाय पखारे. ) जथाजोग...पीढ़न । बैठारे । एम) धोये जनक अवधपति : चरना ॐ सील सनेह जाइ नहिं बरना .... आदर के साथ सब के पाँव धोये और सब को यथायोग्य पीढ़ों पर बैठाया। राम) तब जनकंजी ने अयोध्या-नरेश दशरथजी के चरण धोये । उनके शील और स्नेह की का वर्णन नहीं हो सकता। । बहुरि राम पद पङ्कज धोये जे हर हृदय कमल महुँ गोये । तीनिउ भाइ राम सम जानी ॐ धोये जनक चरन निज पानी हैं। फिर जनक ने रामचन्द्रजी के चरण-कमलों को धोया, जो शिवजी के हृदय म) कमल में छिपे रहते हैं। तीनों भाइयों को राम ही के समान जानकर जनकजी राम) ऊँ ने अपने हाथों से उनके भी चरण धोये । । आसन उचित सबहि नृप दीन्हे बोलि सूपकारक सब लीन्हें ॐ सादर लगे परन पनवारे' $ कनक कील मनि पान सँवारे राजा जनक ने सभी को उचित आसन दिये और फिर सब परोसनेवालों को बुला लिया । आदर के साथ पत्तलें पड़ने लगीं, जो मणियों के पत्तों से सोने । के कील लगाकर बनाई गई थीं। ;

:: एन । सुपोदन सुरभी सरपि सुन्दर स्वादु पुनीत ।
  • छन महँ सब के परसि गे चतुर सुआर बिनीत।३२८ # चतुर और विनीत रसोइये सुन्दर स्वादिष्ट और स्वच्छ दाल, भात और म) गाय का घी, सबके सामने क्षण भर में परस गये । ॐ पॅच कौर करि जेवन लागे झै गारि गान सुनि अति अनुरागे तुम् भाँति अनेक परे पकवाने ॐ सुधा सरिस नहिं जाहिं बुखाने * पाँचों प्राणों के लिये पाँच ग्रास निकालकर वे भोजन करने लगे। गाली

का गाना सुनकर तो वे मुग्ध हो गये। अनेकों तरह के पकवान परसे गये जो * अमृत के समान मीठे थे और जिनका बखान नहीं हो सकती। १. पत्तल । २. पत्ता |.. | ग्रास : प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, व्या स्वाहा और समानाय स्वाहा कहकर ।