पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३६२

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। 2 । छल- छु । म ३५६ ॐ परसन लगे सुअर सुजाना ॐ विञ्जन विविध नाम को जाना राम चारि भाँति भोजन' छु ति गाई ॐ एक एक विधि वनि न जाई । ॐ चतुर रसोइये नाना प्रकार के व्यंजन परोसने लगे। उनका नाम कौन एम् जानता है ? वेदों ने चार प्रकार के भोजन कहे हैं, उनमें एक-एक ही के प्रकार छु का वर्णन नहीं किया जा सकता । रामू छरस रुचिर विञ्जन बहु जाती ॐ एक एक रस अगनित भाँती । | जेंवत देहिं मधुर धुनि गारी के लई लई नाम पुरुप अरु नारी * छओं रसों के बहुत प्रकार के सुन्दर व्यञ्जन हैं। एक-एक रस के अनगिनती प्रकार के बने हैं। भोजन करते समय पुरुष और स्त्रियों के नाम ले-लेकर जनकपुर की स्त्रियाँ मधुर ध्वनि से गाली देने लगीं। म) समय सुहावन गारि विराजा छ हँसत राउ सुनि सहित समाजा ॐ एहि विधि सवही भोजन कीन्हा छ आदर सहित आचमन लीन्हा रामो समय पर गालियाँ भी सुहावनी लगती हैं। उसे सुनकर समाज-सहित उन | राजा दशरथ हँसते हैं। इस तरह सभी ने भोजन किया और आदर-पूर्वक । | राम) आचमन लिया। देड पान् शूजे जनक दसरथु सहित समाज । - जनवाने गवने मुदित सक्त सूर सिरताज ।३२९। जनकजी ने पान देकर समाज-सहित दशरथ जी का पूजन किया। सब ॐ राजाओं के शिरोमणि अयोध्यानरेश प्रसन्न होकर जनवासे को चले । सुमो नित नूतन मङ्गल पुर माहीं ॐ निमिष सरिस दिन जामिनि जाहीं । बड़े भोर भूपति मनि जागे की जाचक गुन गन सावन लागे । जनकपुर में नित्य नये मङ्गल हो रहे हैं। दिन और रात पल के समान बीत जाते हैं। बड़े सवेरे राजाओं के मणि ( दशरथजी ) जागे और याचक लोग उनके गुणों का गान करने लगे। देखि कुँअर वर वधुन्ह समेत किमि कहि जात मोद सन जेता प्रातक्रिया करि गे गुरु पाहीं ॐ महा प्रमोद प्रेम मन माहीं १. चर्च, चोप्य, लेह्य, पेय । । २. खट्टा, मीठा, कडुआ, कसैला, तीता और नमकीन ।