पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३६६

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  • रसोई बनाने वालों को जनकजी ने भेजा । एक लाख घोड़े और पचीस हजार उ, रथ सिर से पैर तक सजाये हुए,

मत सहस दस सिन्धुर साजे छ जिन्हहिं देखि दिसि कुंजर लाजे । एन कनक चुसुन मनि भरि भरि जाना छ महिपी धेनु वस्तु विधि नाना दस हज़ार सजे हुये मतवाले हाथी, जिन्हें देखकर दिशात्रों के हाथी भी लजा जाते हैं, तथा गाड़ियों में भर-भरकर सोना, वस्त्र और रत्न और भैंस, गाय तथा और भी नाना प्रकार की चीजें दीं। , दाइज अमित ने सक्रिय हि दीन्ह विदेह बहोरि। होम जो अवलोक्त लोपति लोक सम्पदा थोरि ॥३३३ ॐ | जनकजी ने फिर से अपरिमित दहेज दिया जो कहा नहीं जा सकता, । और जिसे देखकर लोकपालों को अपने-अपने लोकों की सम्पदा थोड़ी प्रतीत ॐ होती थी। या सव समाजु एहि भाँति वनाई ॐ जनक अवधपुर दीन्ह पटाई चलिहि बरात सुनत सब रानी ॐ विकल मीन गन जनु लघु पानी | इस प्रकार सब सामान सजाकर सबो जनकजी ने अयोध्यापुरी को भेज दियो । वरात जायगी, यह बात सुनते ही सर्व रानियाँ विकल हो गई, जैसे * थोड़े जल में मछलियाँ अकुला रही हों । पुनि पुनि सीय गोद करि लेहीं ॐ देइ असीस सिखावन देहीं होयेहु सन्तत पियहि पियारी ६ चिर अहियात असीस हमारी रानियाँ वार-बार सीता को गोद में ले लेती हैं और आशीर्वाद देकर सिखविन देती हैं—तुम सदा अपने पति की प्यारी होना, तुम्हारा सोहाग अच हो-हमारी यही आशीर्वाद है। सासु ससुर गुरु सेवा करहू ६ पति रुख लखि शायसु अनुग्र अति सनेह वसे सखी सयानीं ॐ नारि धरम सिरहिं मृदु यानी सास, ससुर और गुरु की सेवा करना, पति का रुख देखक, उनकी आज्ञा का पालन करना । सयानी सखियाँ अत्यन्त स्नेह के ब्रश कोमल बाण में स्त्रीहे धर्म सिखलाती हैं। । १. रि।