पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३७०

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ॐ से शिथिल हो गई। फिर धीरज धारण करके पुत्रियों को बुला मातायें उन्हें होम, बारम्बार भेंटने लगीं। ॐ पहुँचावहिं फिरि मिलहिं बहोरी ॐ बढ़ी परसपर प्रीति न थोरी राम पुनि पुनि मिलति सखिन्ह विलगाई वाल वच्छ जिमि धेनु लवाई उन | पहुँचाती हैं, फिर लौटकर मिलती हैं, दोनों ओर परस्पर वड़ी प्रीति बढ़ी । सीता सखियों से बार-बार अलग होकर मिलती हैं। जैसे हाल की व्याई हुई की गाय अपने बालक बछड़े से मिलती है। ॐ का प्रेम बिबस नरनारि सब सखिन्ह सहित रनिवासु । एमे ! मानहूँ कीन्ह बिदेहपुर कलाँ बिरहँ निवास॥३३७॥ एम सब स्त्री-पुरुष और सखियों-सहित रनिवास प्रेम से बेसुध हो गईं। मानो जनकपुर में करुणा और विरह ने डेरा डाला हो । सुक सारिका जानकी ज्याये ॐ कनक पिञ्जरन्हि राखि पढ़ाये ) व्याकुल कहहिं कहाँ बैदेही ॐ सुनि धीरजु परिहरइ न केही राम जानकी ने तोता और मैना जिलाया था, उन्हें सोने के पींजड़ों में रखकर । हैं पढ़ाया था। वे व्याकुल होकर कह रहे हैं सीता कहाँ हैं ? उनके ऐसे वचनों को सुनकर कौन धीरज नहीं छोड़ देगा है। भये बिकल खग मृग एहि भाँती मनुज देसा कैसें कहि जाती के बन्धु समेत जनकु तब आये ॐ प्रेम उमगि लोचन जल छाये जब पक्षी और पशु इस तरह विकल हो गये, तब मनुष्यों की दशा कैसे * कही जा सकती है ? उसी समय भाई-सहित जनकजी वहाँ आये । प्रेम से उमड़ म) कर जल उनकी आँखों में भर आया। ॐ सीय विलोकि धीरता भागी ॐ रहे कहावत परम विरागी। सुमो लीन्हि राय उर लाई जानकी $$ सिटी महा मरजाद ज्ञान की वे तो बड़े विरक्त कहलाते थे, पर सीताजी को देखकर उनका भी धैर्य माम् जाता रहा । राजा ने जानकीजी को हृदय से लगा लिया । प्रेम के कारण ज्ञान की महान् मर्यादा मिट गई। . १. अलग लेजाकर । २. हाल की व्याई हुई।