पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३७५

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---रामो । ३७२ चनिस ८. कैं ॐ बार वार करि विनय बड़ाई 8 रघुपति चले सङ्ग सव भाई हैं राम जनक गहे कौसिक पद जाई ॐ चरन रेनु सिर नयनन्हि लाई हुए बार-बार (जनकजी की) विनती और बड़ाई करके रामचन्द्रजी सब भाइयों के यो के साथ चले । जनकजी ने जाकर विश्वामित्र जी के चरण पकड़ लिये,और एम) है उनके चरणों की धूलि को सिर और नेत्रों से लगाया। सुनु मुनीस बर दरसन तोरे ॐ अगम न कछु प्रतीति मनं मोरें जो सुखु सुजसु लोकपति चहहीं ॐ करत मनोरथ सकुचत अहहीं हे मुनीश्वर सुनिये, आप के दर्शन से कुछ भी, दुर्लभ नहीं, मेरे मन में * ऐसा विश्वास है। जो सुख और सुयश लोकपाल चाहते हैं और असंभव जानकर जिसके लिये मनोरथं करते हुए वे सकुचाते हैं, में सों सुख सुजसु सुलभ मोहि स्वामी ॐ सब सिधि तव दरसन अनुगामी कैं कीन्ह विनय पुनि पुनि सिर नाई ॐ फिरे महीस आसिषा पाई है राम) हे स्वामी! मुझे वही सुख और सुयश सुलभ हो गया; क्योंकि सारी राम ॐ सिद्धियाँ आपके दर्शनों के पीछे चलने वाली हैं। बार-बार विनती करके, सिर । राम) नवाकर और उनसे आशीर्वाद पाकर राजा लौटे। .. ॐ चली बरात निसान बजाई ॐ मुदित छोट बड़ सब समुदाई सु रामहिं निरखि ग्राम नर नारी के पाइ नयन फलु होहिं सुखारी । । नगाड़े बजाकर बरात चली। छोटे-बड़े सभी समूहों के लोग प्रसन्न हैं। रास्ते के गाँव के स्त्री-पुरुष राम को देखकर और नेत्रों का फल पाकरं सुखी बीच बीच बर बास करि मग लोगन्ह सुख देत । राम अवध समीप पुनीत दिन पहुँची आइ जनैत' ।३४३ एम बीच-बीच में सुन्दर पड़ाव करती हुई, रास्ते के लोगों को सुख देती हुई वह राम बरात पवित्र दिन में अयोध्यापुरी के समीप आ पहुँची। । हने निसान पनव वर बाजे ॐ भेरि सङ्ख धुनि हय गय गाजे झाँझ बीन डिंडिमी' सुहाई ॐ सरस राग बाजहिं सहनाई नगाड़ों पर चोटें पड़ने लंग, सुन्दर ढोल बजने लगे, भेरी और शक्क बजने । १. वरात । २. डफली ।