पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३७६

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ॐ लगे; हाथी और घोड़े गरज रहे हैं। झाँझ, वीणी, सुहावनी डफलियाँ तथा । होम रसीले राग से शहनाइयाँ बज रही हैं। ॐ पुर जन आवत अकनि वराता ॐ मुदित सकल पुलकावलि गाता है। । निज निज सुन्दर सदन सँवारे ॐ हाट बाट चौहट पुर द्वारे पुरजनों ने बरात का आना सुना, तव सब आनन्दित हो गये और सबके । राम शरीर पुलकायमान हो गये । सबने अपने-अपने घरों, बाज़ारों, गलियों, चौराहों, तो नगर के द्वारों को सुन्दर सजा लिया। गली सकल अरगजा' सिंचाई की जहँ तहँ चौ चारु पुराई मी बना बजारु न जाइ बखाना ॐ तोरन केतु पताक विताना तीन | सारी गलियाँ अर्गजे से सिंचाई गई, जहाँ-तहाँ सुन्दर चौक पुराये गये । राम) बन्दनवारों, ध्वजा-पताकाओं और मण्डपों से बाज़ार ऐसा सजाया गया कि उसे * बखाना नहीं जा सकता। राम सकल पूगफल कदलि रसाला ॐ रोपे वृकुल' कदम्ब तमाला पुणे लगे सुभग तरु परसत धरनी ॐ मनिस्य आलवाल' कल करनी फल-सहित सुपारी, केला, आम, मौलसरी, कदम्ब और तमाल के पेड़ लगाये गये । वे लगे हुये सुन्दर वृक्ष धरती को छू रहे हैं। उनके थाले मणि * के हैं और अच्छी कारीगरी से बनाये गये हैं। एम के विविध भाँति मङ्गल कलस गृह गृह रचे सँवारि।। । Gle सुर ब्रह्मादि सिहोहिं सब रघुबर पुरी निहारि॥३४॥ अनेक प्रकार के मङ्गल-कलश घर-घर सजाकर बनाये गये । ब्रह्मा आदि सब देवता राम की नगरी ( अयोध्यापुरी ) को देखकर सिहाते हैं । भूप भवतु तेहि अवसर सोहा ॐ रचना देखि मदन मनु मोहा मङ्गल सगुन मनोहरताई ॐ रिधि सिधि सुख सम्पदा सुहाई राम्रो उस समय राजमहल ऐसा शोभित था कि उसकी सजावट देखकर कामदेव क़ा मन भी मोहित हो जाता है। मङ्गल-शकुन, सुन्दरता, ऋद्धि, सिद्धि, सुख । धू और सुन्दर संपत्ति-- १. सुगन्धित द्रव्य । २. सुपारी । ३. मौलसिरी । ४. थाले ।