पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

  • ३७४

छन । जनु उछाह सव सहज सुहाये के तनु धरि धरि दसरथ गृहँ आये हैं। (एम देखन हेतु राम बैदेही ॐ कहहु लालसा होई न केही • मानों सहज सुंदर उत्साह से शरीर धर-धरकर दशरथ के घर में आये हुये क़ एम हैं । रामचन्द्रजी और सीता को देखने के लिये कहो, किसे लालसा न होगी ? म जूथ जूथ मिलि चलीं सुसिनि निज छवि निदरहिं मदन विलासिनि । सकल सुमङ्गल सजे आरती ॐ गावहिं जनु बहु भेष भारती सुहागिनी स्त्रियाँ कुण्ड की झुण्ड मिलकर चलीं, जो अपनी छवि से कामदेव की स्त्री रति का भी निरादर कर रही हैं। सभी सुन्दर मंगल-द्रव्य और आरती सजाये हुये गान कर रही हैं, मानो सरस्वती ही बहुत-से रूप धारण किये गा रही हों। भूपति भवन , कोलाहल होई की जाइ न बरनि समउ सुखु सोई ॐ कौसल्यादि राम महतारीं ॐ प्रेम बिवस तनु दसा विसारीं राजमहल में ( उत्सव का ) हल्ला हो रहा है। उस समय का और सुख क़ का वर्णन नहीं किया जा सकता । कौशल्या आदि रामचन्द्रजी की मातायें प्रेम राम) के वश होकर शरीर की सुधि भूल गई हैं। १ दिये दान बिप्रन्ह बिपुल पूजि गनेस पुरारि । का प्रमदित परम दरिद्र जनु पाई पदारथ चारि ॥३४५ गणेशजी तथा शिवजी का पूजन करके उन्होंने ब्राह्मणों को बहुत-सा दान दिया। वे ऐसी प्रसन्न मालूम होती हैं मानो परम दरिद्री चारों पदार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ) पा गया हो। हैं मोद प्रमोद विवस सब माता ॐ चलहिं ने चरन सिथिल भये गाता राम राम दरस हित अति अनुरागी ॐ परिछन साजु सजन सव लागी सब मातायें सुख और आनन्द में विमुग्ध हो रही हैं। उनके शरीर शिथिल एसे हो गये हैं, और पैर आगे नहीं उठते । रामचन्द्रजी के दर्शनों के लिए वे अत्यन्त । % उत्सुकता से परछन का सब सामान सजाने लगीं। एम् विविध विधान वाजने बाजे की मंगल मुदित सुमित्राँ साजे । हरद दूब दधि पल्लव फूला ॐ पान पूगफल मॅगेलं मूली * १. सरस्वती ।।