पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३८२

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वाल ३७६ है जन्म का दरिद्री मानो पारस-मणि पो गया हो और अन्धे को सुन्दर नेत्रों का लाभ हुआ हो । गैंग के मुख में मानो सरस्वती आ विराजी हों, और मानो शूरवीर ने युद्ध में विजय प्राप्त की हो। पुगे । एहि सुख तें सत कोटि शुन पावहिं सातु अनन्छ । उनी - साइन्ह सहित विहि घर आये रघुकुल चन्द ॥३५० इस प्रकार के सुखों से सौ करोड़ गुना बढ़कर आनन्द माताएँ पा रही हैं। इस प्रकार रघुकुल के चन्द्रमा (राम ) विबाह करके भाइ-सहित घर आये हैं। लोकरीति जननी करहिं वर ढुलहिन स`चाहिं । हैं मोदु विनोड विलोकि बड़ राम सनहिं सुसुकाहिं ॥३५०(२॥ मातायें लोक-रीति करती हैं और दुलह-दुलहिने लजाते हैं। उस आनन्द । * और विनोद को देखकर रामचन्द्रजी मन ही मन सुस्करा रहे हैं। । देव पितर पूजे विधि नीकी ॐ पूजीं सकल वासना जी की । सवहि बन्दि माँगहि वरदाना ॐ भाइन्ह सहित राम कल्याना । देवता और पितरों का भली-भाँति पूजन किया गया। सन की समी वासनायें पूरी हुई। सबक्री बन्दना करके मातायें भाइय-सहित रामचन्द्रजी के तम) कल्याण का वरदान माँगती हैं। रामो अन्तरहित सुर आसिष देहीं ॐ मुदित मातु अञ्चल भरि लेही उम ॐ भूपति बोलि वराती लीन्हे % जान' वसन मनि भूपन दीन्हे देवता अन्तरिक्ष से आशीर्वाद दे रहे हैं और मातायें आनन्दित हो आँचल भरकर ले रही हैं। तत्पश्चात् राजा ने बरातियों को बुलवा लिया और उन्हें पुछ सवारियाँ, वस्त्र, मणि और गहने दिये। यसु पाइ राखि उर रामहिं ॐ मुदित गये सव निज निज धामहिं पुर नर नारि सक्कल पहिराये ॐ घर घर वाजन लगे वधाये | आज्ञा पाकर रामचन्द्रजी को हृदय में रखकर वे सत्र प्रसन्नतापूर्वक अपनेअपने घर गये । राजा ने नगर के समस्त स्त्री-पुरुप को कपड़े और गहने पहनाये। घर-घर आनन्द के बघावे बजने लगे ।। १. योन, सवारी ।