पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३८३

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ॐ ३८० व ५ - ६ जाचक जन जाचहिं जोइ जोई ॐ प्रमुदित राउ देहिं सोइ सोई। सेवक सकल बजनियाँ नाना ॐ पूरन किये दान सनमाना राम याचक लोग जो-जो माँगते हैं, राजा प्रसन्न होकर उन्हें वही-वही देते हैं। राम) सारे सेवळू और बाजे वालों को राजा ने नाना प्रकार के दान और सम्मान से सुमो ऊँ सन्तुष्ट किया। सुमो देहिं असीस जोहारि सब गावहिं गुन गन गाथ।। - तब शुरु भूसर सहित गृह गवन कीन्ह नरनाथ३५१ ) सब प्रणाम करके आशीर्वाद देते हैं और गुण समूहों की कथा गाते हैं। तब राम) गुरु और ब्राह्मणों-सहित राजा दशरथजी ने महल में प्रवेश किया। है जो बसिष्ठ अनुसासन दीन्हीं ॐ लोक बेद बिधि सादर कीन्हीं राम भूसुर भीर देखि सब रानी 8 सादर उठीं भाग्य बड़ जानी | वशिष्ठजी ने जो आज्ञा दी, राजा ने उसे लोक और वेद की विधि के अनुसार आदर-पूर्वक किया । ब्राह्मणों की भीड़ देखकर सब रानियाँ अपना बड़ा भाग्य समझकर आदर के साथ उठ खड़ी हुईं। पाय पखारि सकल अन्हवाये ॐ पूजि भली बिधि भूप जेंवाये । आदर दान प्रेम . परिपोषे ॐ देत असीस चले मन तोपे | चरण धोकर उन्होंने सबको स्नान कराया और राजा ने उनको भलीराम, भाँति पूजन करके उन्हें भोजन कराया। उन्हें आदर, दान और प्रेम से परिपुष्ट किया। वे संतुष्ट मन से आशीर्वाद देते हुए चले। राम) बहु बिधि कीन्हि गाधिसुत पूजा के नाथ मोहि सम धन्य न दूजा राम ॐ कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी ॐ शनिन्ह सहित लीन्हि पग धूरी है राजा ने विश्वामित्रजी की बहुत तरह से पूजा की और कहा--हे नाथ ! ॐ मेरे समान धन्य दूसरा कोई नहीं है। राजा ने उनकी बड़ी बड़ाई की और * राम् रानियों-सहित उनके पाँव की धूलि को ग्रहण किया। के भीतर भवन दीन्ह बर वासू ॐ मन जोगवत रह नृप रनिवासू पूजे गुर पद कमल बहोरी ॐ कीन्ह विनय उर प्रीति न थोरी है ॐ उनको महल के भीतर ठहरने को उत्तम स्थान दिया । राजा तथा रनिवास (राम) १. वहुत ।। " A "