पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३८५

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हो ३८२ छ न । ॐ के चले निसान बजाइ सुर निज निज पुर सुख पाई। ए ! कहत परसपर राम जस प्रेस न हृदयँ समाई।३५३। नगाड़े बजाकर और सुख पाकर देवता अपने-अपने लोकों को चले । आपस में राम का यश कहते जाते हैं। उनके हृदय में प्रेम समाता नहीं है। .. होम सब विधि सवहि समदि नर नाहू ॐ रहा हृदयँ भरि पूरि उछाहू हैं जहँ रनिवास तहाँ पगु धारे ॐ सहित बधूटिन्ह केअर निहारे हैं राम सब प्रकार से सबका प्रेम-पूर्वक भली-भाँति आदर-सत्कार कर लेने पर राम है राजा दशरथ के हृदय में पूर्ण उत्साह ( आनंद ) भर गया । फिर जहाँ रनिवास हैं था, वे वहाँ पधारे और बहुओं-समेत उन्होंने कुँवरों को देखा। ॐ लिये गोद करि मोद समेता ॐ को कहि सकइ भयउ सुख जेता' । मा बधू सप्रेम गोद बैठारी 3 बार बार हिय हरषि दुलारी शुरू * आनंद-सहित उन्होंने पुत्रों को गोद में ले लिया। उस समय उन्हें जितना । सुख हुआ, वह कौन कह सकता है ? फिर पतोहओं को प्रीति के साथ गोदी में बैठाकर, बार-बार हृदय में हर्षित होकर उन्होंने उनका दुलार किया। देखि समाजु मुदित निवासू ॐ सत्र के उर अनन्द कियो बासू मी कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू ॐ सुनि सुनि हरषु होइ सब काहू । यह समाज ( समारोह ) देखकर रनिवास प्रसन्न हो गया। सबके हृदय में आनन्द ने निवास कर लिया। तब राजा ने जिस तरह विवाह हुआ था, वह सब कहा। उसे सुन-सुनकर सब को हर्ष हो रहा है। राम जनक राज गुन सीलु चड़ाई की प्रीति रीति सम्पदा सुहाई है बहु बिधि भूप भाट जिमि बरनी 3 रानी सब प्रमुदित सुनि करनी | राजा जनकजी के गुण, शील, बड़प्पन, प्रीति की रीति और सुन्दर सम्पत्ति का वर्णन राजा ने भाट की तरह बहुत प्रकार से किया । जनकजी की करनी है सुनकर सब रानियाँ बहुत प्रसन्न हुईं। ख) - सुतन्ह समेत नहाइ चुप बोलि विप्र गुर ज्ञाति।। 1 dal भोजन कीन्ह अनेक विधि घरी पञ्च गइ राति।३५४॥ हैं। १, जितना । २. जाति, विरादरी ।