पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३८६

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| बाल-काण्ड ३८३ । ॐ पुत्रों-सहित स्नान करके राजा ने ब्राह्मण, गुरु और कुटुम्बियों को बुलाकर राम) अनेक प्रकार के भोजन किये। इस प्रकार पाँच घड़ी रात बीत गई। मङ्गल गान करहिं बर भामिनि ॐ भई सुखमूल मनोहर जामिनि । अँचइ पान सर्व काहूँ पाये ॐ खग सुगन्ध भूपित छवि छाये सुन्दर स्त्रियाँ मङ्गल-गान कर रही हैं। वह रात्रि मनोहारिणी और सुख की मूल हो गई। सबने आचमन करके पान खाये और फूलों की माला, सुगन्धित द्रव्य ( इत्र आदि ) से विभूषित होकर वे शोभा से छा गये ।। रामहं देखि रजायसु पाई ॐ निज निज भवन चले सिर नाई है। प्रेमु प्रमोदु विनोदु वड़ाई के समउ समाजु मनोहरताई यो | रामचन्द्रजी को देखकर, आज्ञा पाकर और सिर नवाकर वे अपने-अपने घर की को चले । उस समय के प्रेम, आनन्द, विनोद, वड़ाई, समय, समाज और रामो मनोहरता को, । कहि न सकहिं सत सारद सेसू ॐ वेद बिरश्चि महेस गनेसू सो मैं कहउँ कवन विधि चरनी ॐ भूमिनाग' सिर धरई कि धरनी सैंकड़ों सरस्वती, शेष, वेद, ब्रह्मा, शिव और गणेशजी भी नहीं कह सकते। उसको मैं किस तरह बखानकर कह सकता हूँ ? कहीं केंचुआ भी धरती को सिर पर ले सकता है ? नृप सब भाँति सवहिं सनमानी ॐ हि मृदु वचन बोलाई रानी वधू लरिकिनी पर घर आईं ॐ राखेहु नयन पलक की नाईं राजा ने सबका सब प्रकार से सम्मान करके, कोमल बेचने कहकर रानियों को बुलाया और कहा--बहुए अभी बच्ची हैं, पराये घर आई हैं, इनको नेत्र और सुमो पलक की भाँति रखना। हो १ लरिका स्रमित उनीद बस स्यन करावहु जाई ।। असहि गे बिस्राम गृहँ रामचरन चितु लाइ।३५५५ । लड़के थके हुए नींद के वश हो रहे हैं, इन्हें ले जाकर शयन कराओ ।। * ऐसा कहकर राजा राम के चरणों में मन लगाकर विश्राम-भवन में चले गये । । १. केंचुवा । २, तरह ।