पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३८७

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। ३८४ ॐ कोटि अन । ॐ भूप वचन सुनि सहज सुहाये ॐ जटित कनक मनि पलँग डसाये हैं। राम सुभग सुरभि पय फेन समाना को कोमल कलित सुपेतीं नानां स्वभाव ही से राजा के सुहावने वचन सुनकर रानियों ने मणियों से जड़े है राम्या सुवर्ण के पलङ्ग बिछवाए। गाय के दूध के फेन के समान सुन्दर कोमल नानी प्रकार की सुपेतियाँ ( पतली और मुलायम रजाइयाँ ), तथा उपवरहन' बर बरनि न जाहीं ॐ स्रग सुगन्ध मनि मन्दिर माहीं रतन दीप सुठि चारु चँदोवा ॐ कहत न बनइ जान जेहि जोवा * उत्तम तकियों का वर्णन नहीं किया जा सकता। मणियों के मन्दिर में हैं म फूलों की मालायें और सुगन्ध द्रव्य सजे हैं। रत्न के दीपकों और सुन्दर चॅदोवे । क़ की शोभा कहते नहीं बनती । जिसने देखा है, वही जान सकता है। सेज रुचिर रचि रामु उठाये ॐ प्रेम समेत पलँग पौढ़ाये । ॐ अग्या पुनि पुनि भाइन्ह दीन्ही ॐ निज निज सेज सयन तिन्ह कीन्ही सुन्दर सेज सजाकर राम को उठाया गया और प्रीति के साथ पलँग पर । पौढ़ाया गया। रामचन्द्रजी ने बार-बार भाइयों को आज्ञा दी, तब वे भी अपनीमें अपनी पलँगों पर सोये ।। देखि स्याम मृदु मञ्जुल गाता ॐ कहहिं सप्रेम बचन सब माता मारग जात भयावनि भारी ६ केहि बिधि तात ताड्को मारी | रामचन्द्रजी के सुन्दर श्यामल कोमल अंगों को देखकर सब मातायें प्रेम राम ॐ से वचन कह रही हैं—हे तात ! मार्ग में जाते हुए तुमने बड़ी भयावनी ताड़का राक्षसी को कैसे मारा ? घोर निसाचर बिकट भट समर गनहिं नहिं काहु। * ' मार सहित सहाय किमि खल मारीच सुबाहु ।३५६॥ ॐ भयङ्कर राक्षस, जो विकट योद्धा थे और जो युद्ध में किसी को कुछ गिनते ॐ ही नहीं, उन दुष्ट मारीच और सुबाहु को उनके सहायकों-सहित तुमने कैसे मारा ? राम मुनि प्रसाद बलि तात तुम्हारी ॐ ईस अनेक करवरें टारी एम्। ॐ मख रखवारी करि दोउ भाई ॐ गुर प्रसाद सब विद्या पाई १. तकिया । २. माला । ३. बलायें, मुसीबतें ।