मैं । हैं। 82 ३६ इस प्रकार मेरी अनेक प्रकार की विनती को समझ कर, कथा सुनकर कोई भी मुझे दोष न देगा। इतने पर भी जो शङ्का करेंगे, वे मुझसे भी अधिक मूर्ख और बुद्धि के दुरिद्र हैं।
कवि न होउँ नहिं चतुर कहाउँ । मति अनुरूप रामगुन गावउँ ॥ कहँ रघुपति के चरित अपारा । कहँ मति मोरि निरत' संसारा ॥
न मैं कवि हूँ, न चतुर कहलाता हूं। मैं अपनी बुद्धि के अनुसार रामचन्द्रजी के गुण गाता हूं। कहाँ अपार रामचरित और कहाँ संसार के प्रपंच में फंसी हुई मेरी बुद्धि !
जेहि मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं । कहहु तूल केहि लेखे माहीं ॥ समुझत अमित राम प्रभुताई । करत कथा मम अति कदराई ॥
जिस पवन से सुमेरु जैसे पवेत उड़ जाते हैं, कहो, उसके सामने रूई किस गिनती में है ? श्रीरामचन्द्रजी की प्रभुता को अपार समझकर कथा रचने में मेरा मन बहुत हिचकता है। [काब्यार्थापत्ति अलँकार ]
दोहा- सारद सेष महेस विधि आगम निगम पुरान। नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान ॥१२॥ t
सरस्वती, शेषजी, शिवजी, ब्रह्मा, शास्त्र, वेद और पुराण ये सब ‘नेति न नेति" (इतना ही नहीं, इतना ही नहीं) कहकर जिनका गुण-गान सदा किया करते हैं ।
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई । तदपि कहे बिनु रहा न कोई ॥ तहाँ बेद अस कारन राखा । भजन प्रभाउ भांति बहु भाखा' ॥
यद्यपि सब जानते हैं कि प्रभु श्रीरामचन्द्रजी की प्रभुता (महिमा ) वैसी ही है, तो भी कोई कहे बिना नहीं रहा। इसमें बेद ने ऐसा कारण बताया कि भजन का प्रभाव अनेक प्रकार का कहा गया है। अर्थात् भक्त को अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार भजन करना चाहिये।
एक अनीह अरूप अनामा । अज सच्चिदानंद परधामा ॥ व्यापक विस्वरूप भगवाना । तेहि धरि देह चरित कृत नाना ॥
१. फंसी हुई । २. गिनती । ३. कहा ।४. करता है।