पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३९०

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तू बाल-कङ ३८७ ॐ पुनि बसिष्टु मुनि कोसिकु आये ॐ सुभग आसनन्हि मुनि बैठाये मी सुतन्ह समेत पूजि पद लागे ॐ निरखि राम दोउ शुर अनुरागे | फिर वशिष्ठ और विश्वामित्र ऋषि आये । राजा ने उन्हें सुन्दर आसन । ए) पर बैठाया । पुत्रों-समेत राजा ने उनकी पूजा करके उनके पाँव छुए । दोनों गुरु । । राम को देखकर प्रेम में मुग्ध हो गये। है कहहिं बसिष्ठु धरम इतिहासा ॐ सुनहिं महीपु सहित रनिवासा मी मुनि मन अगम गाधिसुत करनी ॐ मुदित बसिष्ठ विपुल विधि वरनी ॐ वशिष्ठजी धार्मिक इतिहास कह रहे हैं और महाराज रनिवास-सहित सुन । राम) रहे हैं। विश्वामित्रजी के कृत्य को, जो मुनियों के मन को भी अगम्य है, छैन वशिष्ठजी ने आनन्दित होकर बहुत प्रकार से वर्णन किया। राम बोले बामदेव सब साँची के कीरति कलित लोक तिहुँ माँची । सुनि अानंद भयउ सब काहू के राम लखन उर अधिक उछाहू बामदेवजी ने कहा- हाँ, ये सब बातें सत्य हैं, विश्वामित्रजी की सुन्दर कीर्ति तीनों लोकों में छाई हुई है। यह सुनकर सभी को आनन्द हुआ। रामहैं लक्ष्मण के हृदय में विशेष आनन्द आया । सुमो मंगल मोद उछाह नित जाहिं दवस एहि भाँति।। है ! उसगी अवधअनंद भरि अधिकअधिक अधिकाति॥ ॐ नित्य ही मंगल, आनन्द और उत्सव होते हैं। इस तरह आनन्द में दिन में बीतते जाते हैं। अयोध्यापुरी आनन्द से भरकर उमड़ पड़ी। आनन्द की अधिकता अधिक-अधिक बढ़ती ही जा रही है। राम) सुदिन : सोधि कल कंकन छोरे ॐ मंगल मोद बिनोद न थोरे । नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं की अवध जनम जाचहिं विधि पाहीं | अच्छा दिन ( शुभ मुहूर्त ) शोधकर सुन्दर कङ्कण खोले गये । तव भी राम । मंगल, आनन्द और विनोद कम नहीं हुये। ऐसे नित्य नये सुखों को देख-देख का कर देवगण : सिहोते हैं और ब्रह्मा से अयोध्या में जन्म पाने के लिये प्रार्थना १ करते हैं।