पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३९३

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छु ३९२ % छ । ॐ नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, श्री सीताजी जिनके वाम भाग में विराजमान हैं और जिनके हार्यों में अमोघ बाण और सुंदर धनुष हैं, उन रघुवंश के स्वामी श्रीरामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ। रामे श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि । एमा

  • बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

श्रीगुरुजी के चरण-कमलों की रज से अपने मनरूपी दर्पण को साफ़ करके के मैं रामचन्द्रजी के उस निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फलों ( धर्म, से अर्थ, काम, मोक्ष ) का देने वाला है। जब तें रामु व्याहि घर आए ॐ नित नव मङ्गल मोद बधाए छैले भुवन चारिस भूधर भारी ॐ सुकृत मेघे बरषहिं सुख बारी हैं। । जब से रामचन्द्रजी विवाह करके घर आये, तब से नित्य नये मङ्गल हो राम्। हो रहे हैं और आनन्द के बधावे बज रहे हैं। चौदह लोकरूपी बड़े-भारी पर्वतों पर है राम पुण्यरूपी मेघ सुखरूपी जल बरसा रहे हैं। । रिधि सिधि संपति नदी सुहाई ॐ उमगि अवध अम्बुधि कहँ आई है । मनि गर्न पुर नर नारि सुजाती $ सुचि अमोल सुंदर सब भाँती ऋद्धि-सिद्धि और सम्पन्तिरूपी सुन्दर नदियाँ उमड़-उमड़कर अयोध्यारूपी । * समुद्र में आ मिलीं । नगर के स्त्री-पुरुष ही अच्छी जाति के मणियों के समूह हैं, जो सब प्रकार से पवित्र, अमोल और सुन्दर हैं। * कहि न जाइ कछु नगर विभूती ॐ जलु एतनिअ बिरंचि करतूती के राम सब बिधि सब पुर लोग सुखारी ॐ रामचन्दु मुख चंदु निहारी। । नगर का वैभव्र ( ऐश्वर्यं ) कुछ कहा नहीं जाता। ऐसा जान पड़ता है कि राम) मानो ब्रह्मा की कारीगरी बस इतनी ही है। श्रीरामचन्द्रजी के सुखरूपी चन्द्रमा राम्रो है को देखकर सब नगर-निबासी सब तरह से सुखी हैं। राम मुदित मातु. सब सखी सहेली के फलित विलोकि मनोरथ, बेली । राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ ॐ प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ . सब मातायें और सखी-सहेलियाँ अपनी मनोरथरूपी लता को फली हुई हैं। को देखकर आनन्दित हैं। श्रीरामचन्द्रजी के रूप, गुण, शील और स्वभाव को देख * : १. दर्पण । २. देखकर । ३. लता । ।