पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३९६

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हहिं लोग सव छ । राजन राउर लालु जलु सब अभिमत दातार। - फल अनुगामी सहिपमनिसन अभिलाषु तुम्हार॥३ हे राजन् ! आपका नाम और यश सारे मनोरथ को पूरा करने वाला है। हे राजाओं में मणि ! आपके मन की अभिलाषी फल के पीछे-पीछे चलती है। अर्थात् इच्छा करने से पहले ही फल प्राप्त हो जाता है। [ अत्यंतातिशयोक्ति अलंकार रामो सव विधि शुरु प्रसन्न जियँ जानी $ बोलेउ राउ रहँसि मृदु वानी नाथ रामु करिअहि जुबराजू ॐ कहि कृपा करि करिय समाजू | अपने जी में गुरुजी को सब तरह से प्रसन्न जानकर, आनन्द में भरकर, | कोमल वाणी से राजा ने कहा--हे नाथ ! रामचन्द्र को युवराज कीजिये । कृपा | करके आज्ञा दीजिये, तो तैयारी की जाय । मोहि अछत यहु होइ उछाहू ॐ लहहिं लोग सव लोचन लाडू प्रभु प्रसाद सिव सबइ निवाहीं ॐ एह लालसा एक मन माहीं । मेरे जीतेजी यह आनन्द-उत्सव हो जाय और सब लोग अपने नेत्रों को |कै लाभ पाये । आपकी कृपा से शिवजी ने और तो सब निबाह दिया; बस, अव । यही एक लालसा मन में और रह गई है। ॐ पुनि न सोच तनु रहर कि जाऊ ॐ जेहिं न होय पाछे पछिताऊ । सुनि मुनि दसरथ बचन सुहाये के मङ्गल मोद मूल मन भाये। | फिर सोच नहीं, शरीर रहे या चला जाय; और जिससे फिर पीछे पछतावा न हो । दशरथजी के आनन्द और मंगल के मूल सुन्दर वचन मुनि को बहुत प्रिय लगे। सुलु नृप जासु विमुख पछिताहीं ॐ जासु भजन विनु जनि न जाहीं है। | भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी ॐ रामु पुनीत प्रेम अलुगासी | (गुरुजी ने कहा-) हे राजन् ! सुनिये, जिससे विमुख होकर लोग ए पछताते हैं और जिसके भजन बिना जी की जलन नहीं जाती, जो पवित्र । प्रेम के पीछे चलने वाले हैं, वे ही स्वामी रास आपके पुत्र हुये हैं। १. देने वाला । २. अनिन्दित होकर । ॐ लाभ के जीतेजी यह अब निवाही