पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/३९७

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दि 3 । ३६६ . छ न . - बेगि विलम्बु न करिअ नृप साजिअ संबुइ समाजु। ॐ 0 ° सुदिनु सुमङ्गलु तबहिं जब रासु होहिं जुबराजु । राम्रो | हे राजन् ! अब देर न कीजिये जल्दी ही सब तैयारी कीजिए । शुभ दिन और सुन्दर मङ्गलाचार तभी है जब रामचन्द्र युवराज हो जायँ।. . मुदित महीपति मन्दिर आये $ सेवक संचिव सुमन्त्रु बोलाये। कुँ कहि जयजीव सीस तिन्ह नाये ॐ भूप सुमङ्गल बचन सुनाये राम) राजा आनन्दित होकर महल में आये और उन्होंने सेवकों तथा मन्त्री राम ॐ सुमंत्र को बुलवाया। उन्होंने ‘जयजीव' कहकर सिर नवाये। फिर राजा ने उत्तम । मंगलमय वचन उन्हें सुनाये । ॐ प्रमुदित मोहि कहेड गुर आजू ॐ रामहिं राय देहु, जुबराजू है । जौ पाँचहि मत लागइ नीका ॐ करहु हरषि हिय रामहिं टीका हे मंत्री ! आज गुरुजी ने प्रसन्न-चित्त से मुझे आज्ञा दी है कि हे राजन् ! आप रामचन्द्रजी को युवराज-पद् दें। जो यह मत पंचों को अच्छा लगे, तो । * प्रसन्न हृदय से आप लोग रामचन्द्र का राजतिलक कीजिये । ...। मन्त्री मुदित सुनत प्रिय वानी ॐ अभिमत बिरवें परेउ जनु पानी विनती सचिव करहिं कर जोरी जिअहु जगतपति बरिस करोरी इस प्रिय वाणी को सुनकर मन्त्री ऐसे आनन्दित हुए, मानो मनोरथरूपी हैं पौधे पर जल पड़ गया हो। मन्त्री लोग हाथ जोड़कर विनती करते हैं कि हे राम ॐ जगत्पति ! आप करोड़ वर्ष जियें। जग मङ्गल भल काजु बिचारा ॐ बेगि नाथ ने लाइअ बारा नृपहिं मोदु सुनि सचिव सुभाखा ॐ बढ़त बौंड़ जनु लंही सुंसाखा अपने जगत् का कल्याण करने वाला भला काम सोचा है । हे नाथ ! * जल्दी कीजिये, देर न लगाइये । मंत्रियों की सुन्दर वाणी सुनकर रोजा को ऐसा है आनन्द हुआ मानो बढ़ती हुई लता सुन्दर टहनियों से संज्जित हो गई। । ' कहेउ भूप मुनिराज़ कर जोइ जोई आयसु होई । म - रोम राज अभिषेक हित बेगि करहु सोइ सोइ ॥५॥ १. पंचों को । २. राजतिलक । ३. पौधा । ४. करोड़। ५. देरी'। ६. लता, वेल।.