पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४०

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बाल-काण्ड ३७ ॐ

जो परमेश्वर एक है और इच्छा से रहित है, जिसका न कोई रूप हैं, न नाम है, जिसका जन्म नहीं होता, जो सच्चिदानन्द और परमधाम है, जो समस्त संसार में व्यापक और विश्वरूप है, वही परमेश्वर शरीर धारण करके म तरह-तरह के चरित्र दिखाया करता है। ॐ

सो केवल भगतन हित लागी ॐ परम कृपाल प्रनत अनुरागी ॥राम 
जेहि जन पर ममता अति छोहू ॐ जेहि करुना करि कीन्ह न कोहू' ॥

वह लीला केवल अपने भक्तों ही के लिये है। क्योंकि भगवान् बड़े कृपालु हैं और शरणागत पर स्नेह करने वाले हैं। भक्तजनों पर उनकी ममता और अत्यन्त कृपा रहती है और एक बार जिस पर कृपा की फिर कभी उन पर उन्होंने क्रोध नहीं किया। रामो

गई वहोर गरीव नेवाजू” ॐ सरल सबल साहिव रघुराजू ॥
बुध बरनहिं हरि जस अस जानी । करहिं पुनीत सुफल निज वानी ॥

बही प्रभु रघुनाथजी बिगड़ी वस्तु को फिर प्राप्त कराने वाले, गरीब-नेबाज (दीनबन्धु), सरल-स्वभाव, सर्वशक्तिमान और सबके स्वामी हैं। यही समझकर पंडित लोग उन हरि का वर्णन करते और अपनी बाणी को पवित्र और सफल बनाते हैं। ।

तेहि बल मैं रघुपति गुन गाथा ॐ कहिहउँ नाइ राम पद माथा ॥ राम) 
मुनिन्ह प्रथम हरि कीरति गाई । तेहि मग चलत सुगम मोहिं भाई ॥ ॐ 

उसी बल से श्रीरामचन्द्रजी के चरणों में सिर नवाकर मैं श्रीरघुनाथजी के गुणों की कथा कहूंगा । हे भाई ! मुनियों (वाल्मीकि, व्यास आदि) ने पहले हैं। हरि की कीर्ति गाई है। उसी मार्ग पर चलना मेरे लिये सुगम होगा।

अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं।। राम 
चढ़ि पिपीलिकउ परम लघु बिनुस्रम पारहिं जाहिं ॥१३॥ 

जो बहुत बड़ी और श्रेष्ठ नदियाँ हैं उन पर राजा यदि पुल बँधवा देता है, तो उसे ( पुल ) पर चढ़कर बहुत छोटी चींटी भी बिना परिश्रम के पार चली जाती है। १. क्रोध । २. गई हुई । ३. फेर लाना । ४. कृपा करने वाले ! ५. चींटी 1