पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४०२

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छ । अ छा - ए । छ । ४०१ ते ॐ राम करहु सब संजम आजू % जौं विधि कुसल निवाहइ काजू राम्रो गुर सिख देइ राय पहिं गयउ ॐ राम हृदयँ अस विसमउ भयउ (इसलिए) हे राम ! आज तुम सब संयम ( उपवास, हवन, ब्रह्मचर्यादि का एछ पालन ) करो, जिससे विधाता कुशल-पूर्वक इस काम को निचाह दें। गुरुजी । शिक्षा देकर राजा ( दशरथ ) के पास चले गये, रामचन्द्रजी के हृदय में इस बात का विचार पैदा हुआ कि जनमें एक सङ्घ सव भाई ॐ भोजन सयन केलि लरिकाई ॐ करनवेध उपवीत विश्राहा ® संग संग सव भए उछाहा में हम सब भाई एक ही साथ जन्मे, सबके भोजन, शयन, खेल-कूद, उमा ॐ लड़कपन, कर्णवेध ( कान छिदना ), यज्ञोपवीत और विवाह आदि उत्सव सब के एम) साथ ही साथ हुए । हुँ विमल बंस यहु अनुचित एकू ॐ बन्धु बिहाइ बडेहिं अभिषेकू एम् प्रभु सप्रेम पछितानि सुहाई ६ हउ भगत मन कै कुटिलाई पर इस निर्मल वंश में एक यही बात अनुचित है कि और सव भाइयों को * छोड़कर एक बड़े ही का राज्याभिषेक होता है। ( तुलसीदासजी कहते हैं कि ) प्रभु ( रामचन्द्रजी ) को यह सुन्दर प्रेमपूर्ण पछतावा भक्तों के मन की कुटिलता को हरण करे । एम) तेहि अवसर आए लषन मंगल प्रेस आनंद।। ॐ d सनमाने प्रिय बचन कहि रघुकुल कैरव चन्द॥१०॥ । उसी समय प्रेम और आनन्द में मग्न लक्ष्मणजी आये । रघुकुल रूपी मी कुमुद के खिलाने वाले चन्द्रमा रामचन्द्रजी ने प्रिय वचन कहकर उनका के सम्मान किया ।। सुमो वाजहिं बाज़न बिबिध बिधाना पुर प्रमोदु नहिं जाइ वखाना । भरत आगमनु सकल मनावहिं की आवहिं बेगि नयन फल पावहिं। । नाना प्रकार के बाजे बज रहे हैं। अयोध्यापुरी के अतिशय आनंद का

  • वर्णन नहीं हो सकता। सब लोग भरतजी का आना मना रहे हैं, और कह रहे | हैं कि वे भी जल्दी आ जायें और नेत्रों का फल प्राप्त कर लें ।