पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४०५

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४०४ टिन के . वह दुर्बुद्धि नीच जाति वाली मन्थरा विचार करने लगी कि रात ही रात म) में यह काम कैसे बिगड़े है जैसे कोई कुटिल भीलनी शहद को छत्ता लगा देखॐ कर घात लगाती है कि इसको किस तरह से ले लें ? [ उदाहरण अलंकार ] भरत मातु पहिं गइ विलखानी ॐ का अनमनि' हसि कह हँसि रानी ) ऊतरु देइ न लेइ उसासू ॐ नारि चरित करि ढाई आँसू हैं। | वह बिलखती हुई भरतजी की माता कैकेयी के पास गई । उसको देखकर है कैकेयी ने हँसकर कहा-तू उदास क्यों है ? मन्थरा कुछ जवाब नहीं देती, केवल । लम्बी साँस ले रही है और स्त्री-चरित करके आँखों से आँसू ढरको रही है। राम्रो हँसि कह शनि गालु बड़ तोरे ॐ दीन्ह लषन सिख अस मन मोरें तवहुँ न बोल चेरि बड़ि पापिनि छ छाँड़ई स्वासं कारि जनु साँपिनि । | रानी कैकेयी हँसकर कहने लगी कि तेरे बड़े गाल हैं (तू बड़ी मुँहज़ोर है)। मेरा मन कहता है कि लक्ष्मण ने तुझे कुछ सीख दी है। इतने पर भी महापापिनी मन्थरा कुछ नहीं बोलती। वह ऐसी लम्बी साँसें छोड़ रही है मानो काली नागिन हो । एम) * समय शनि कह कहसि किन कुल रामु महीपालु। होम हैं - लषलु भरतुरिपुदमनु सुनि भाकुबरी उर सालु॥१३॥ | रानी कैकेयी ने डरकर कंहा—अरी ! कहती क्यों नहीं १ रामचन्द्र, राजा, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्नं कुशल से तो हैं ? यह सुनकर कुबरी मन्थरा के हृदये में बड़ी ही पीड़ा हुई। कत सिख देइ महिं कोउ माई ॐ गालु करब केहि कर बुलु पाई रामहिं छाँड़ि कुसल केहि आजू ॐ जिनहि जनेसु देइ जुबराजू | वह बोली---हे माता ! हमें कोई क्या सीख देगा है और मैं किसका बल | पाकर मुंहजोरी करूगी ? रामचंन्द्र को छोड़कर और किसकी कुशल है, जिन्हें मी राजा युवराज-पद दे रहे हैं। ॐ भयउ कौसिलहि बिधि अति दाहिन ® देखत गरंब रहत उर नाहिन देखहु कसं न जाइ सब सोभी की जो अवलोकि मोर मनु छोभा । आज विधाता कौशल्या के बहुत ही अनुकूल हुये हैं। उनको देखकर आज * १. उदास, वेचैन । २. है। •